(i) एंटासिड्स के रूप में – हम जानते हैं कि पेट के अंदर जिगर में अम्ल उत्पन्न होता है जिसमें हाईड्रोक्लोरिक ऐसिड होता है जो भोजन के पचने में सहायक होता है। परंतु इसकी अधिक मात्रा होने पर बदहज़मी, पेट दर्द तथा जलन होती है, जिसे ऐसिडिटी कहते हैं।
इसके अतिरिक्त ऐसिड को उदासीन करने के लिए कुछ हल्के क्षारक का प्रयोग किया जाता है ताकि दर्द से राहत मिल सके। ऐसे पदार्थों को ऐंटासिडस कहते हैं, जैसे कि मिल्क ऑफ मैग्नीशीयम ( मैग्नीशीयम हाइड्रोक्साइड), बेकिंग सोडा आदि।
(ii) कीटों के डंक के उपचार के रूप में – भिन्न जाति के कीट, शहद की मक्खियाँ, मकड़ियाँ तथा चीटियाँ जब हमारे शरीर पर डंक मारती हैं तो शरीर में फार्मिक ऐसिड छोड़ देती हैं। फार्मिक ऐसिड को कुछ हल्के क्षारक, जैसे बेकिंग सोडा या कैलामाइन विलयन से उदासीनीकरण द्वारा बेअसर करके ऐसिड के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
(iii) मिट्टी की अम्लीयता तथा क्षारकीयता के उपचार के रूप में – कुछ पदार्थों के कारण मिट्टी ज्यादा अम्लीय या अधिक क्षारकीय हो जाती है। रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग, मिट्टी को अम्लीय बनाता है। पौधों के सही वृद्धि तथा विकास के लिए मिट्टी उदासीन होनी चाहिए। इसलिए मिट्टी की परख की जाती है ताकि इसका उपचार चूने (कैल्शियम ऑक्साइड), बुझे चूने (कैल्शियम हाइड्रोक्साइड) आदि से किया जा सके। यदि मिट्टी क्षारकीय है तो इसमें जैविक पदार्थ मिलाया जाता है जो अम्ल छोड़ता है तथा मिट्टी में मौजूद क्षारक को उदासीन कर देता है।
(iv) कारखानों से निकले अपशिष्ट के उपचार के रूप में – कारखानों तथा फैक्टरियों के अपशिष्ट स्वाभाविक रूप से तेज़ाबी (अम्लीय) होते हैं। यदि इन्हें सीधे ही फेंक दिया जाए तो यह जल-जीवन को प्रभावित करके हानि पहुँचा सकते हैं। इसलिए अम्लीय व्यर्थ को उदासीन करना आवश्यक है। इसलिए इसके उपचार के लिए कुछ क्षारक मिलाया जाता है।