भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में कुछ विशेष वस्त्र विरोधाभासी संदेश देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं संशय और विरोध पैदा करती हैं। ब्रिटिश भारत में भी वस्त्रों का बदलाव इन विरोधों से होकर निकला। उदाहरण के लिए हम पगड़ी और टोप को लेते हैं। जब यूरोपीय व्यापारियों ने भारत आना आरंभ किया तो उनकी पहचान उनके टोप से की जाने लगी। दूसरी ओर भारतीयों की पहचान उनकी पगड़ी थी। ये दोनों पहनावे न केवल देखने में भिन्न थे, बल्कि ये अलगअलग बातों के सूचक भी थे। भारतीयों की पगड़ी सिर को केवल धूप से ही नहीं बचाती थी बल्कि यह उनके आत्मसम्मान का चिह्न भी थी। बहुत से भारतीय अपनी क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय पहचान दर्शाने के लिए जान बूझ कर भी पगड़ी पहनते थे। इसके विपरीत पाश्चात्य परंपरा में टोप को सामाजिक दृष्टि से उच्च व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उतारा जाता था। इस परंपरावादी भिन्नताओं ने संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी। जब कोई भारतीय किसी अंग्रेज़ अधिकारी से मिलने जाता था और अपनी पगड़ी नहीं उतारता था तो वह अधिकारी स्वयं को अपमानित महसूस करता था।