‘दिन जल्दी – जल्दी ढलता है’ में कवि ने मनुष्य की मनःस्थिति का चित्रण किया है। कवि कहता है कि पथिक को अपने घर पहुँचने की जल्दी है। उसे पता है कि उसकी मंजिल अब अधिक दूर नहीं है, उधर उसे यह भय भी सता रहा है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए। वह थोड़ा जल्दी चले तो समय से वहाँ पहुँच सकता है। मंजिल के पास होने से वहाँ पहुँचने की जल्दी उसे तेजी से चलने के लिए प्रेरित करती है।
जब मनुष्य जल्दी में होता है और किसी काम को शीघ्र पूरा करने के लिए व्याकुल होता है तो उसे लगता है कि समय जल्दी ही बीता जा रहा है। समय तो अपनी ही गति से बीत रहा है परन्तु अपनी मन:स्थितिवश मनुष्य को यह भ्रम होता है कि समय तेजी से बीत रहा है।