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निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –

निर्लिप्त रहकर दूसरों का गला काटने वालों से लिप्त रहकर दूसरों की भलाई करने वाले कहीं अच्छे हैं क्षात्रधर्म ऐकान्तिक नहीं है, उसका सम्बन्ध लोकरक्षा से है। अतः वह जनता के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करने वाला है। ‘कोई राजा होगा तो अपने घर का होगा’.इससे बढ़कर झूठ बात शायद ही कोई और मिले। झूठे खिताबों के द्वारा वह कभी सच नहीं की जा सकती। क्षात्र जीवन के व्यापकत्व के कारण ही हमारे मुख्य अवतार—राम और कृष्ण क्षत्रिय हैं। कर्म-सौन्दर्य की योजना जितने रूपों में क्षात्र जीवन में सम्भव है, उतने रूपों में और किसी जीवन में नहीं। शक्ति के साथ क्षमा, वैभव के साथ विनय, पराक्रम के साथ रूप-माधुर्य, तेज के साथ कोमलता, सुखभोग के साथ परदुःख-कातरता, प्रताप के साथ कठिन धर्म-पथ का अवलम्बन इत्यादि कर्म-सौन्दर्य के इतने अधिक प्रकार के उत्कर्ष-योग और कहाँ घट सकते हैं ? इस व्यापार युग में, इस वणिग्धर्म-प्रधान युग में, क्षात्रधर्म की चर्चा करना शायद गई बात का रोना समझा जाय पर आधुनिक व्यापार की अन्याय रक्षा भी शस्त्रों द्वारा ही की जाती है। क्षात्रधर्म का उपयोग कहीं नहीं गया है केवल धर्म के साथ उसका असहयोग हो गया है।

(i) हमारे मुख्य अवतार राम और कृष्ण थे
(अ) ब्राह्मण
(ब) क्षत्रिय
(स) वैश्य
(द) शूद्र।

(ii) क्षात्रधर्म में कौन-कौन से गुण पाये जाते हैं ?
(अ) शक्ति के साथ क्षमा और तेज के साथ कोमलता
(ब) वैभव के साथ विनय व पराक्रम के साथ रूप की मधुरता
(स) दुःखभोग के साथ परदुःखकातरता व प्रताप के साथ कठिन धर्मपथ का अवलम्बन
(द) उपर्युक्त सभी।

(iii) आज किन गुणों की उपेक्षा हो रही है ?
(अ) धर्म, परोपकार और मानवता की
(ब) धनोपार्जन की
(स) वणिग्धर्म की
(द) व्यापारियों के व्यापार की।

(iv) ‘वणिग्धर्म’ का समास विग्रह बताइए
(अ) वणिक को धर्म
(ब) वणिक के लिए धर्म
(स) वणिक् का धर्म
(द) अयादि सन्धि।

(v) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा
(अ) वणिग्धर्म की महत्ता
(ब) ब्राह्मण धर्म की महत्ता
(स) व्यापारी वर्ग की महत्ता
(द) क्षात्रधर्म की महत्ता।

(vi) धर्म के साथ किसका असहयोग हो गया है
(अ) मनुष्य का
(ब) अहिंसा का
(स) सुखभोग का
(द) क्षात्रधर्म का

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(i) (ब) क्षत्रिय

(ii) (द) उपर्युक्त सभी।

(iii) (अ) धर्म, परोपकार और मानवता की

(iv) (स) वणिक् का धर्म

(v) (द) क्षात्रधर्म की महत्ता।

(vi) (द) क्षात्रधर्म का

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