निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए –
क्षमा शोभती उस भुजंग को
उठी अधीर धधक पौरुष की
जिसके पास गरल हो,
आग राम के शर से।
उसको क्या, जो दन्तहीन
सिन्धु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
विषहीन विनीत सरल हो।
करता आ गिरा शरण में,
तीन दिवस तक पंथ माँगते
चरण पूज, दासता ग्रहण की
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैंधा मूढ़ बन्धन में।
बैठे पढ़ते रहे छन्द
सच पूछो तो शर में ही
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
बसती है दीप्ति विनय की,
उत्तर में जब एक नाद भी
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
उठा नहीं सागर से,
जिसमें शक्ति विजय की।
(i) क्षमा किसको शोभा देती है ?
(अ) विषयुक्त सर्प को
(ब) सरल व्यक्ति को
(स) शक्ति सम्पन्न व्यक्ति को
(द) निर्बल को।
(ii) समुद्र के किनारे खड़े होकर कौन रास्ता मांग रहा है ?
(अ) लक्ष्मण
(ब) सुग्रीव
(स) विभीषण
(द) राम।
(ii) ‘अनुनय के प्यारे छन्द पढ़ने’ से क्या आशय है ?
(अ) अच्छे गीत गाना
(ब) भजन-कीर्तन करना
(स) नम्रता से विनय करना
(द) दोहा-छन्द पढ़ना।
(iv) सिन्धु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’ में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) अनुप्रास
(ब) पुनरुक्ति प्रकाश
(स) उपमा
(द) यमक।
(v) उपर्युक्त पाश का उपयुक्त शीर्षक है
(अ) विषधर सर्प
(ब) भगवान राम और सागर
(स) जीवन में शान्ति का महत्त्व
(द) जीवन में शक्ति की महत्ता।
(vi) समुद्र का समानार्थक शब्द पद्यांश में प्रयुक्त हुआ है
(अ) सिन्धु
(ब) सागर
(स) जलागार
(द) अ और ब