अपने सद्गुरु सतराम दास के स्वर्गवास के बाद कॅवरराम अकेले ही समाज के उत्थान के कामों में लगे रहे। वे लोगों को प्रेम और भक्ति का सन्देश देते थे, उन्हें संगीतमय भजन सुनाते तथा पीड़ितों का दर्द दूर करते थे। वे मधुर संगीत की मस्ती में झूमकर सभी को आनन्दित करते रहे।