प्राथमिक समूहों की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है –
1. उद्देश्यों की समानता: प्राथमिक समूह में प्रत्येक सदस्य दूसरे के हित को ही अपना उद्देश्य बना लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दूसरों के हित में कार्य करता है, एक के उद्देश्य दूसरों के उद्देश्य बन जाते हैं। उद्देश्यों की समानता के कारण ही प्राथमिक समूह के सदस्यों में हम की भावना तीव्र होती है।
2. सम्बन्ध सम्पूर्ण होते हैं: प्राथमिक समूहों में सम्पूर्णता का गुण पाया जाता है। ऐसे सम्बन्ध में व्यक्ति के जीवन का केवल एक पहलू ही नहीं आता, बल्कि व्यक्ति अपनी सम्पूर्णता के साथ इसमें भाग लेता है। प्राथमिक सम्बन्ध में बँधने वाले व्यक्ति दीर्घकाल से चले आ रहे परिचय तथा घनिष्ठ सम्पर्क के कारण एक-दूसरे को पूरी तरह जानते हैं।
3. सम्बन्धों का स्वतः विकास: इन समूहों का विकास स्वतः ही होता है, इनके लिए किसी पर कोई दबाव नहीं डाला जा सकता है। प्राथमिक सम्बन्ध ऐच्छिक प्रकार के होते हैं। किसी के उकसाने से ऐसे सम्बन्ध स्थापित नहीं होते हैं। सम्बन्ध तो व्यक्ति की स्वयं की इच्छा से ही बनते हैं।
4. सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं: इसका तात्पर्य यह है कि समूह में प्रत्येक व्यक्ति की अन्य लोगों में व्यक्तियों के रूप में रुचि होती है। ये सम्बन्ध हस्तान्तरित नहीं किए जा सकते। मित्र अथवा माता-पिता का स्थान अन्य व्यक्ति नहीं ले सकता।
5. प्राथमिक सम्बन्धों की नियंत्रण शक्ति: सम्बन्धों की सम्पूर्णता एवं घनिष्ठता के कारण व्यक्ति का अस्तित्व साधारणतः प्राथमिक समूह में विलीन हो जाता है। प्राथमिक सम्बन्धों के कारण व्यक्ति एक-दूसरे के साथ ऐसा बँधा रहता है कि वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता जो समूह के अन्य सदस्यों के लिए कष्टदायी हो अथवा जिससे आदर्श-प्रतिमानों की अवहेलना होती हो।