निक्षेप का अर्थ: जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अनुबन्ध के अन्तर्गत किसी विशिष्ट उद्देश्य से माल की सुपर्दगी करता है कि उसका उद्देश्य पूरा हो जाने पर माल सुपर्दगी देने वाले व्यक्ति को वापस कर दिया जायेगा अथवा उसके आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दी जायेगी तो ऐसे अनुबन्ध को निक्षेप अनुबन्ध कहते हैं। जो सुपर्दगी देने वाला, व्यक्ति होता है उसे निक्षेपी कहते हैं और जो सुपर्दगी प्राप्त करने वाला, व्यक्ति होता है उसे निक्षेपम्रहीता कहते हैं।
उदाहरण – मनोज जयपुर के एक होटल में ठहरता है तथा अपना बैग आदि सामान होटल के प्रबन्धक को सुपुर्द कर देता है जब तक कि वह होटल में ठहरता है। यहाँ मनोज, निक्षेपी तथा होटल प्रबन्धक निक्षेपग्रहीता है।
निक्षेपी के कर्तव्य:
निक्षेपी के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं –
(1) माल के दोषों को प्रकट करना – निक्षेप किये गये माल के दोषों को प्रकट करना निक्षेपी का कर्तव्य है। निक्षेपी द्वारा निक्षेपग्रहीता को निक्षेपित माल के सम्बन्ध में ऐसे सभी दोषों को प्रकट कर देना चाहिए जिनकी उसे जानकारी है तथा जिनसे माल के प्रयोग में विशेष बाधा पड़ती है या निक्षेपग्रहीता को किसी असाधारण जोखिम का खतरा हो।
(2) आवश्यक व्ययों का भुगतान करना – जब निक्षेप की शर्तों के अन्तर्गत निक्षेपी को कोई वस्तु रखना या ले जाना अथवा उस पर कोई कार्य करना है और निक्षेपग्रहीता को उसका कोई परिश्रमिक नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति में निक्षेपी, निक्षेपग्रहीता को ऐसे समस्त आवश्यक व्यय चुकाने के लिये बाध्य कर सकता है। जो निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेप के लिये किये गये हैं।
(3) निःशुल्क निक्षेप में माल की वापसी से उत्पन्न हानि की क्षतिपूर्ति करना – यदि निःशुल्क निक्षेप में निश्चित अवधि या उद्देश्य की पूर्ति से पूर्व माल वापस माँग लिया जाता है जिससे निक्षेपग्रहीता को लाभ की अपेक्षा हानि उठानी पड़ती है तो निक्षेपी का कर्तव्य है कि वह निक्षेपग्रहीता की क्षतिपूर्ति को पूरा करे।
(4) असाधारण व्ययों का भुगतान करना – यदि निक्षेप निशुल्क है तो निक्षेपी साधारण व्यय को देने के लिये बाध्य नहीं होता है बल्कि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेप के सम्बन्ध में कोई असाधारण व्यय किये हों तो निक्षेपी को उनको चुकाना होगा।
निक्षेपग्रहीता के कर्त्तव्य:
निक्षेपग्रहीता के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं –
(1) निक्षेपित माल की देखभाल करना – निक्षेप चाहे सशुल्क हो या निशुल्क निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है कि वह निक्षेपित माल की उतनी ही देखभाल करे जितनी कि एक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति उस स्थिति में उसी मात्रा, गुण, तथा मूल्य वाले स्वयं के माल के सम्बन्ध में करता।
(2) निक्षेप की शर्तों के विपरीत कार्य न करना – निक्षेपित माल के सम्बन्ध में यदि कोई शर्ते रखी गई हैं तो निक्षेपग्रहीता को शर्तों का पालन करना चाहिये। यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल के सम्बन्ध में शर्तों के विपरीत कार्य करता है तो निक्षेपी अनुबन्ध को अपनी इच्छा पर समाप्त कर सकता है। तथा निक्षेपित माल को वापस ले सकता है।
(3) निक्षेप के माल को अपने माल से न मिलाना – निक्षेपित मात के सम्बन्ध में निक्षेपग्रहीता का कर्त्तव्य है कि उसे अपने निजी माल के साथ नहीं मिलाना चाहिये। यदि वह ऐसा करता है तो माल के अलग करने के व्यय तथा होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी उसी की होगी।
(4) निक्षेपित वस्तु को वापस करना – निक्षेपित माल का उद्देश्य पूरा या अवधि समाप्त हो जाने पर निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है कि निक्षेपित माल निक्षेपी को समय पर वापस कर दे या निक्षेपी की आज्ञानुसार माल को सुपुर्द कर दे।
(5) किसी वृद्धि अथवा. लाभ को वापस करना – निक्षेपित माल में कोई वृद्धि या लाभ हुआ है तो निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है वह उसे निक्षेपी या उसके आदेशानुसार वापस कर देना चाहिये।