महात्मा गाँधी स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप के पक्षधर थे। वे स्वतंत्रता को नियन्त्रण के अभाव के रूप में नहीं अपितु व्यक्तित्व के विकास की अवस्था की प्राप्ति के रूप में देखते हैं। इस रूप में स्वतन्त्रता का अर्थ उन परिस्थितियों से है जो व्यक्ति को एक उन्मुक्त जीवन जीने तथा जीवन को सुरक्षित रख सके। उसको जीवनयापन के संसाधन जुटाने के अवसर प्राप्त हों, वह अपने विचारों को प्रकट कर सके तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सके।