गौंड लोगों के निवास क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के कारण विगत 30 वर्षों में श्रमिक-कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। बड़ी संख्या में लोग खदानों व विनिर्माण उद्योगों में श्रमिकों के रूप में कार्य करने लगे हैं। खनन व निर्माण केन्द्रों के समीप इनकी नई व स्थाई बस्तियाँ बस गई हैं। इन बस्तियों में अस्पतालों, विद्यालयों, बाजारों, बैंकों व पंचायतों की स्थापना हुई है। सड़क व रेलमार्गों के जाल से इनका सम्पर्क शहर से बढ़ा है। जीवन-शैली में तेजी से बदलाव आ रही है। पुराने रीति-रिवाज वे परम्पराओं की पकड़ कम होती जा रही है। सरकार ने दासता का प्रतीक कबाड़ी प्रथा को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया है। इस प्रथा के अनुसार छोटे से कर्ज को चुकाने के लिए ऋणी की कई पीढ़ियों को साहूकारों के गुलामों की भाँति कार्य करना पड़ता था।