'सहर्ष स्वीकारा है' कविता गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'भूरी-भूरी खाक-धूल' से ली गई है। व्यक्त कविता में कवि ने अपने जीवन की तमाम अच्छी-बुरी स्थितियों को संघर्ष स्वीकारने की बात की है। एक होता है - स्वीकारना। और दूसरा होता है-खुशी-खुशी स्वीकारना। इस कविता द्वारा कवि ने जीवन के सम्यक् भाव को अंगीकार करने की प्रेरणा देते हुए प्रिय द्वारा प्रदत्त सभी स्थितियों को खुशी-खुशी स्वीकारने की बात कही है।
कवि इन सभी परिस्थितियों के साथ प्रिय का जुड़ाव महसूस करते हैं। स्वाभिमान युक्त गरीबी, जीवन के गम्भीर अनुभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में उठती भावनाएँ जीवन में मिली उपलब्धियाँ सभी के लिए प्रिय को प्रेरक मानता है। लेकिन दूसरी तरफ कवि का अन्तर्विरोध भी स्पष्ट हुआ है। कवि को लगता है कि प्रिय के प्रेम के प्रभावस्वरूप कमजोर पड़ता जा रहा है। इस कारण भविष्य अन्धकारमय लगता है। इसलिए सब कुछ भूलकर विस्मृति के अन्धकारमय गुफा में एकाकी जीवन जीना चाहते हैं ताकि मन की दृढ़ता व जीवन की कठोरता के प्रति सक्षम हो सकें।