मानव अधिवास का अर्थ-पृथ्वी के धरातल पर मानव द्वारा निर्मित एवं विकसित आवासों के संगठित समूह को अधिवास कहते हैं। मानव अधिवासों को मानव बस्ती भी कहा जाता है। मानवीय अधिवास स्थायी एवं अस्थायी होते हैं। मानवीय अधिवासं प्रतिरूप-अधिवासों के बसाव की आकृति के आधार पर किये विभाजन को अधिवास प्रतिरूप कहा जाता है। मानवीय अधिवास प्रतिरूपों का निर्धारण करने वाले अनेक घटक होते हैं।
आकृति के आधार पर अधिवास प्रतिरूपों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है –
1. रेखीय प्रतिरूप
2. तीर प्रतिरूप
3. त्रिभुजाकार प्रतिरूप
4. आयताकार प्रतिरूप
5. अरीय त्रिज्या प्रतिरूप
6. वृत्ताकार प्रतिरूप
7. तारा प्रतिरूप
8. पंखा प्रतिरूप
9. अनियमित प्रतिरूप
10. सीढ़ीनुमा प्रतिरूप
11. मधुमक्खी छत्ता प्रतिरूप
12. अन्य प्रतिरूप
1. रेखीय प्रतिरूप: जब सड़क मार्गों, रेलमार्गों, नहर नदी या सागर तट के सहारे बस्ती का विकास होता है तो रेखीय प्रतिरूप वाले अधिवास निर्मित होते हैं। भारत में गंगा-यमुना के मैदानों में इस प्रकार के प्रतिरूप मिलते हैं।

2. तीर प्रतिरूप: किसी अन्तरीप के शीर्ष पर नदी के विसर्प के सहारे या दोआब के बीच तीरनुमा अधिवास प्रतिरूप विकसित होता है। भारत में कन्याकुमारी व उड़ीसा में चिल्का झील तट पर इस प्रकार के अधिवास प्रतिरूप मिलते हैं।

3. त्रिभुजाकार प्रतिरूप: नदियों, नहरों व सड़कों के संगम पर इस प्रकार के प्रतिरूपों का विकास होता है। भारत में पंजाब व हरियाणा में ऐसे प्रतिरूप देखने को मिलते हैं।
4. आयताकार प्रतिरूप: आयताकार या चौक पट्ट्टी प्रतिरूप जब दो सड़कें आपस में मिलती हैं और उनके मिलन स्थल से दोनों सड़कों के किनारे लम्बवत् गलियों का निर्माण होता है तब आयताकार प्रतिरूप का निर्माण होता है।

5. अरीय त्रिज्या प्रतिरूप: जब किसी क्षेत्र में एक स्थान पर अनेक दिशाओं से कच्ची सड़कें या पक्की सड़कें मिलती हैं तो मिलन स्थान से त्रिज्याकार मार्गों पर मकानों का निर्माण होता है, परन्तु सभी गलियाँ मुख्य चौराहों पर मिलने से समानान्तर नहीं होती हैं। गंगा के ऊपरी मैदान में इस प्रकार के प्रतिरूप मिलते हैं।

6. वृत्ताकार प्रतिरूप: किसी झील, तालाब, कुएँ, किले, धार्मिक स्थान या चौपाल के चारों ओर मकान बनने से मिर्मित बस्ती का आकार वृत्ताकार प्रतिरूप बनाता है।

7. तारा प्रतिरूप: तारा प्रतिरूप प्रारम्भ में अरीय प्रतिरूप के रूप में विकसित होता है। किन्तु बाद में बाहर की ओर जाने वाली सड़कों के किनारे मकान बनने से इसकी आकृति तारे जैसी हो जाती है। इसलिए इसे तारा प्रतिरूप कहा जाता है।

8. पंखा प्रतिरूप: जब किसी क्षेत्र में केन्द्रीय स्थल के चारों और मकान बनते हैं। इसके बाद बस्ती का विकास सड़क के किनारे रेखीय प्रतिरूप में होता है तो पंखाकार प्रतिरूप विकसित होता है।
9. अनियमित प्रतिरूप: जब मानव अपनी सुविधा के अनुसार बिना किसी योजना के मकानों का निर्माण करता है तो आकार रहित अधिवास विकसित होते हैं इन्हें अनाकार प्रतिरूप कहते हैं। भारत में राजस्थान के बारें जिले में लिसाड़ी नामक गाँव इस प्रतिरूप का उदाहरण है।
10. सीढ़ीनुमा प्रतिरूप: इस प्रकार के अधिवास प्रतिरूप पर्वतीय ढालों पर विकसित होते हैं। हिमालय, रॉकीज, एंडीज पर्वतों में इस प्रकार के प्रतिरूप मिलते हैं। इस प्रकार के प्रतिरूप में मकानों की पंक्तियाँ ढाल के अनुसार कई स्तरों में दिखाई देती हैं।

11. मधुमक्खी छत्ता प्रतिरूप: आदिवासी जनजातियों के गुम्बदनुमा झोपड़ियों के अधिवास मधुमक्खी छत्ता प्रतिरूप को दर्शाती हैं।
12. अन्य प्रतिरूप: जिन अधिवासों द्वारा कोई आकार निर्मित नहीं होता उन्हें अन्य प्रतिरूपों में शामिल किया जाता है।