द्विवेदीजी ने यह वाक्य महात्मा गाँधी के लिए कहा है। जिस प्रकार शिरीष के फूल भयंकर लू और गर्मी में भी खिलते रहते हैं, आत्मबल से वे विपरीत स्थितियों का सामना करते हैं, इसी प्रकार गाँधीजी अनासक्त रखकर, सुख दुःख आदि से निश्चिन्त रहकर आत्मबल से सदैव संघर्ष करते रहे और अपने लक्ष्य में सफल रहे।