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(महादेवी वर्मा) - लेखिका परिचय-साहित्य-रचना एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में महादेवी वर्मा का आदरणीय स्थान रहा है। हिन्दी साहित्य में रेखाचित्र एवं संस्मरण विधा को आगे बढ़ाने में इनका अनुपम योगदान रहा है। अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों, साहित्यकारों, जीव-जन्तुओं आदि का संवेदनात्मक चित्रण कर महादेवी ने अतीव मार्मिकता प्रदान की है। 

ये छायावादी युग की नारी - संवेदना से मण्डित कवयित्री रही हैं। इनकी कविताओं में आन्तरिक वेदना और पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है, जिससे वे इस लोक से परे किसी अव्यक्त सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई देती हैं। इनकी प्रतिभा कविता और गद्य इन दोनों में अलग-अलग स्वभाव लेकर सक्रिय रही है। गद्य के क्षेत्र में इनका दृष्टिकोण सामाजिक सरोकार के प्रति संवेदनामय रहा है।

महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में तथा निधन सन 1987 ई. में इलाहाबाद में हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-नीहार, नीरजा, रश्मि, सान्ध्यगीत, दीपशिखा तथा यामा (काव्य-संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी और मेरा परिवार (संस्मरण-रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ, आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर इत्यादि (निबन्ध-संग्रह)। ये ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार तथा पद्मभूषण से सम्मानित हुई हैं। 

पाठ-सार - 'भक्तिन' महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें भक्तिन, एक ऐसी नारी का परिचय दिया गया है, जो लेखिका की सेविका रही है। भक्तिन छोटे कद तथा दुबले शरीर की थी। उसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था, किन्तु उसके निवेदन पर तथा उसकी कण्ठी-माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया था। 

1. भक्तिन का प्रारम्भिक जीवन - सी गाँव के एक अहीर की इकलौती बेटी और विमाता की छाया में पली लक्ष्मी का विवाह पाँच वर्ष की होने पर हंडिया गाँव के एक सम्पन्न गोपालक के पुत्र से हुआ। नौ वर्ष की होने पर लक्ष्मी का गौना कर दिया। विमाता ने उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से भेजा। तब सास ने अपशकुन से बचने के लिए उसे नहीं बताया और पीहर भेज दिया। वहाँ उसके साथ कठोर व्यवहार किया गया, तो वह वापस ससुराल आ गयी।

2. कन्या जन्म एवं विधवा जीवन - जीवन में भक्तिन को सुख नहीं मिला। उसकी तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जिठानियों ने उसकी उपेक्षा प्रारम्भ कर दी। सास के तीन कमाऊ बेटे थे, जिठानियों के भी पुत्र थे। उनके लड़के खेलते-कूदते, जबकि घर का सारा काम भक्तिन और उसकी बेटियाँ करती थीं। लेकिन उसका पति उसे सच्चे मन से प्यार करता था। वह संयुक्त परिवार से अलग हो गई। जहाँ उसने बड़ी लड़की का धूमधाम से विवाह किया। 

दुर्भाग्य से लक्ष्मी विधवा हो गई। भक्तिन की सम्पत्ति पर कब्जा करने की नीयत से जेठ-जिठानियों ने उससे दूसरा विवाह करने को कहा, परन्तु उसने मना कर दिया रोज की कलह से उसने केश कटवा कर कण्ठी धारण कर ली और अपनी छोटी लड़कियों की शादी कर बड़े दामाद को घर-जमाई बना लिया। 

3. दुर्भाग्य एवं विवशता - भक्तिन का दुर्भाग्य उसके साथ लगा था, उसी समय बड़ी लड़की विधवा हो गई। अपनी विधवा बहन का दूसरा विवाह कराने के लिए जेठ का पुत्र अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, पर लड़की. ने उसे अस्वीकार कर दिया। एक दिन वह जबर्दस्ती उसकी कोठरी में घुस गया। 

यद्यपि लड़की ने उसका भरपूर विरोध किया, उसके चेहरे को नोच दिया, परन्तु पंचायत ने उन्हें पति-पत्नी के रूप में रहने का आदेश दिया। माँ-बेटी विवश थीं। यह सम्बन्ध सुखकारी नहीं रहा। पैसों की कमी आने से समय पर लगान नहीं चुकाया, तो जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर नभर कडी धुप में खडा रख दिया। इस अपमान को सहन न कर सकने से वह कछ कमाई करने के विचार से शहर चली आयी। 

4. महादेवी की सेविका - सिर मुंडा हुआ, गले में कण्ठी और मैली धोती पहने लक्ष्मी अर्थात् भक्तिन लेखिका के पास नौकरी पाने आयी और सेविका बन गई। भक्तिन पवित्र आचरण की थी। प्रात:काल स्नान करके, सूर्य और पीपल को अर्घ्य देकर तथा दो मिनट का जप कर वह चौके की सीमा निर्धारित कर खाना बनाने लगी। यह क्रम नित्य का बन गया। भक्तिन छुआछूत भी मानती थी। उसके द्वारा पकाया गया भोजन ग्रामीण परिवार के स्तर का था।

5. भक्तिन का स्वभाव - भक्तिन दूसरों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करती थी, किन्तु स्वयं अपरिवर्तित बनी रहती। वह लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को किसी मटकी में रख लेती। लेखिका ने जब उसे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा, तो उसने 'तीरथ गए मुँडाए सिद्ध' कहकर यह काम शास्त्रसिद्ध बताया। भक्तिन सरल स्वभाव की थी, उसे गर्व था कि उसकी मालकिन जो काम करती है, उसे दूसरा नहीं कर सकता। लेखिका की किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसे बहुत प्रसन्नता होती थी। भक्तिन लेखिका की हर तरह से सेवा करती थी और भक्ति-भावना से सारे काम करती थी। 

6. सेवार्थ समर्पित - जब भक्तिन को बेटी-दामाद, नाती को लेकर उसे बुलाने आये, तब वह समझाने-बुझाने पर भी उनके साथ नहीं गई। वह जीवन के अन्त तक लेखिका का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुई। भक्तिन लेखिका के परिचितों से परिचित हो गई थी, परन्तु कविता से उसका कोई लगाव नहीं था। वह महादेवी के साथ कारागार भी जाना चाहती थी। वह छात्रावास की लड़कियों के साथ स्नेह-सद्भाव रखती थी। इस तरह भक्तिन का जीवन लेखिका की सेवा के लिए समर्पित था।

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