साहित्य, संस्कृति एवं दर्शन के परिप्रेक्ष्य में ललित निबंधों की रचना हुई। 'शिरीष के फूल' निबन्ध में मानवतावादी दृष्टिकोण तथा कवि हृदय की छाप है। इससे उनके पांडित्य, बहुज्ञता तथा विविध विषयों से सम्बन्धित ज्ञान का पता चलता है। द्विवेदीजी ने शिरीष को माध्यम बनाकर मानवीय आदर्शों को व्यंजित किया है। निबन्धकार ने भीषण गर्मी और लू में भी हरे-हरे और फूलों से लदे रहने वाले शिरीष की तुलना अवधूत से की है।
इसके माध्यम से जीवन के संघर्षों में अविचलित रहकर लोकहित में लगे रहने तथा कर्त्तव्यशील बने रहने के श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों पर जोर दिया। शिरीष के अपने स्थान पर जमे रहने वाले कठोर फलों द्वारा भारत के सत्ता लोलुप नेताओं पर व्यंग्य किया गया है। अनासक्ति और फक्कड़ाना मस्ती को जीवन के लिए आवश्यक माना है। शिरीष के फूल में बुद्धि की अपेक्षा मन को प्रभावित किया गया है। यही ललित निबन्ध की विशेषता है। भाषा सरल और सरस है। शैली कवित्वपूर्ण एवं लालित्ययुक्त है।