लाल रक्ताणुओं की सतह पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रतिजन (या एन्टीजन) के आधार पर रक्त समूह दो प्रकार के होते हैं, जिन्हें ABO तंत्र तथा Rh तंत्र कहा जाता है।
(i) ABO तंत्र (समूह)-इस तंत्र में दो प्रकार के एन्टीजन (Antigen) होते हैं। इनकी खोज लैण्डस्टीनर (Lnadsteiner) ने की थी। एन्टीजन A तथा एन्टीजन B लाल रक्ताणुओं की सतह पर पाये जाते हैं। प्लाज्मा में दो प्रकार की एण्टीबॉडी या प्रतिरक्षी पायी जाती हैं-एण्टीबॉडी ‘a’ तथा एण्टीबॉडी ‘b’ । एण्टीजन तथा एण्टीबॉडी (Antigenrand Antibodies) की उपस्थिति के आधार पर रक्त समूह चार प्रकार के होते हैं-A, B, AB तथा O।
- रुधिर वर्ग A (Blood group-A)-इसकी लाल रक्त कणिकाओं (RBCs) में एण्टीजन A (Antibodies) होता है।
- रुधिर वर्ग B (Blood group-B)-इसकी लाल कणिकाओं में एण्टीजन B (Antigen-B) होता है।
- रुधिर वर्ग AB (Blood group-AB)-इसकी लाल रक्त कणिकाओं में एण्टीजन A तथा B दोनों होते हैं।
- रुधिर वर्ग O (Blood group-0)- इसकी लाल रक्त कणिकाओं में कोई भी एण्टीजन नहीं होता है।

उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि रुधिर वर्ग (रक्त समूह) O एक सार्वत्रिवॐ दाता (Universal donar) है जो सभी वर्गों को रक्त प्रदान कर सकता है। रुधिर वर्ग AB सार्वत्रिक ग्राही (Universal Receptor) है जो सभी प्रकार के रक्त वर्गों से रक्त ले सकता है।
(ii) Rh तन्त्र-यह रक्त तन्त्र रक्ताणु की सतह पर Rh एण्टीजन की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति पर आधारित है। इसकी खोज लैण्डस्टीनर एवं बीनर ने की थी। जिन व्यक्तियों के रक्ताणुओं पर Rh एण्टीजन पाया। जाता है, उन्हें Rh धनात्मक (Rh + ve) तथा जिनमें नहीं पाया जाता है। उन्हें Rh ऋणात्मक (Rh – ve) कहते हैं।