(ख) कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्भावना का ही नाश नहीं करता, बल्कि बृद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरूष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाह के समान होगी, जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।