आधुनिक समय और परिस्थिति की विचारधारा ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण ने बिहार की परिस्थिति ही बदल डाली। वैश्वीकरण के कारण बिहार पर पड़े प्रभाव \(-\)
(i) शुद्ध घरेलू उत्पाद तथा प्रतिव्यक्ति शुद्ध घरेलू उत्पादन में वृद्धि : वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप राज्य के शुद्ध घरेलू उत्पाद में वृद्धि आयी है। इसका सीधा असर प्रतिव्यक्ति आय पर पड़ता है। आय में वृद्धि के फलस्वरूप राज्य की अर्थव्यवस्था सुचारू गति से चल रही है।
(ii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि : वैश्वीकरण के कारण राज्य में रोजगार के कई नए अवसर खुल गए। वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का योगदान बहुत होता है तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ शिक्षित तथा कुशल श्रमिकों को रोजगार तथा सेवा उपलब्ध कराती है ।
(iii) निर्धनता में कमी : सन् 1993-94 की वार्षिक वित्तीय वर्ष में राज्य में निर्धनता रेखा के नीचे 54.96% लोग अपना गुजर-बसर करते थे। वहीं वैश्वीकरण के कारण 1999-2000 में घटकर 42.6% हो गई है।
(iv) बाजारों में वस्तुओं की बहुलता : वैश्वीकरण ने एक उन्नत बाजार का निर्माण किया । वर्तमान समय में विभिन्न कम्पनियाँ अपने अच्छे उत्पादों को लेकर बाजार में तैयार है। प्रतिस्पर्धा के कारण जनता को कम कीमत तथा अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तु मिल जाती है।
परन्तु वैश्वीकरण का एक दूसरा पक्ष भी बिहार के संदर्भ में उजागर होता है जो निम्नलिखित हैं \(-\)
(i) लघु एवं कुटीर उद्योग पतन की ओर अग्रसर : वैश्वीकरण ने बिहार के संदर्भ में नकारात्मक पक्ष को भी उभारा है। इसने लघु एवं कुटीर उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है। कई ऐसे कुटीर उद्योग बंदी की कगार पर हैं। आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सहयोग से नये उत्पाद आ जाने के उपरांत स्वदेशी वस्तुएँ बौनी सिद्ध हो रही हैं।
(ii) कृषि में पिछड़ापन : बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है फिर भी कृषि में किया गया निवेश संतोषजनक नहीं है। बिहार राज्य में कृषि पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिलना चाहिए। परन्तु वैश्वीकरण के कारण इस पक्ष पर ध्यान नहीं दिया गया।