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NCERT Solutions Class 10, Hindi, Kshitij, पाठ- 2, राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद, तुलसीदास

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NCERT Solutions Class 10, Hindi, Kshitij, पाठ- 2, राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

लेखक - तुलसीदास

प्रश्न-अभ्यास

1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?

उत्तर

कवि ने ‘श्री ब्रजदूलह’ ब्रज-दुलारे कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। वे सारे संसार में सबसे सुंदर, सजीले, उज्ज्वल और महिमावान हैं। जैसे मंदिर में ‘दीपक’ सबसे उजला और प्रकाशवान होता है। उसके होने से मंदिर में प्रकाश फैल जाता है। उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से ही सारे ब्रज-प्रदेश में आनंद, उत्सव और प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

परशुराम के क्रोध करने पर श्री राम ने धीरज से काम लिया। उन्होंने नम्रता पूर्ण वचनों का सहारा लेकर परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया। परशुराम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके क्रोध पर शीतल जल के समान शब्दों व आचरण का आश्रय ले रहे थे। यही कारण था कि उन्होंने स्वयं को उनका सेवक बताया व उनसे अपने लिए आज्ञा करने का निवेदन किया। उनकी भाषा अत्यंत कोमल व मीठी थी और परशुराम के क्रोधित होने पर भी वह अपनी कोमलता को नहीं छोड़ते थे। इसके विपरीत लक्ष्मण परशुराम की भाँति ही क्रोधी स्वभाव के हैं। निडरता तो जैसे उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरी है। इसलिए परशुराम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न नहीं कर पाता। लक्ष्मण परशुराम जी के साथ व्यंग्यपूर्ण वचनों का सहारा लेकर अपनी बात को उनके समक्ष प्रस्तुत करते हैं। तनिक भी इस बात की परवाह किए बिना कि परशुराम कहीं और क्रोधित न हो जाएँ। वे परशुराम के क्रोध को न्यायपूर्ण नहीं मानते। इसलिए परशुराम के अन्याय के विरोध में खड़े हो जाते हैं। जहाँ राम विनम्र, धैर्यवान, मृदुभाषी व बुद्धिमान व्यक्ति हैं वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण निडर, साहसी, क्रोधी तथा अन्याय विरोधी स्वभाव के हैं। ये दोनों गुण इन्हें अपने-अपने स्थान पर उच्च स्थान प्राप्त करवाते हैं।

3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर

लक्ष्मण - हे मुनि! बचपन में हमने खेल-खेल में ऐसे बहुत से धनुष तोड़े हैं तब तो आप कभी क्रोधित नहीं हुए थे। फिर इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं?

परशुराम - अरे, राजपुत्र! तू काल के वश में आकर ऐसा बोल रहा है। यह शिव जी का धनुष है।

4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए -

बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही||
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही||
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा||
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर||

उत्तर

परशुराम ने अपने विषय में ये कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं और अतिक्रोधी स्वभाव के हैं। सारा संसार उन्हें क्षत्रियकुल के नाशक के रूप में जानता है। उन्होंने कई बार भुजाओं की ताकत से इस धरती को क्षत्रिय राजाओं से मुक्त किया है और ब्राह्मणों को दान में दिया है| लक्ष्मण वे अपना फरसा दिखाकर कहते हैं कि इस फरसे से उन्होंने सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला था। इसलिए वह अपने माता-पिता चिंतित ना करे| उनका फरसा गर्भ में पल रहे शिशुओं का नाश कर देता है।

5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

उत्तर

लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई है -

  • वीर पुरुष स्वयं अपनी वीरता का बखान नहीं करते अपितु वीरता पूर्ण कार्य स्वयं वीरों का बखान करते हैं।
  • वीर पुरुष स्वयं पर कभी अभिमान नहीं करते। वीरता का व्रत धारण करने वाले वीर पुरुष धैर्यवान और क्षोभरहित होते हैं।
  • वीर पुरुष किसी के विरुद्ध गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते। अर्थात् दूसरों को सदैव समान रुप से आदर व सम्मान देते हैं।
  • वीर पुरुष दीन-हीन, ब्राह्मण व गायों, दुर्बल व्यक्तियों पर अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं करते हैं। उनसे हारना व उनको मारना वीर पुरुषों के लिए वीरता का प्रदर्शन न होकर पाप का भागीदार होना है।
  • वीर पुरुषों को चाहिए कि अन्याय के विरुद्ध हमेशा निडर भाव से खड़े रहे।
  • किसी के ललकारने पर वीर पुरुष कभी पीछे कदम नहीं रखते अर्थात् वह यह नहीं देखते कि उनके आगे कौन है वह निडरता पूर्वक उसका जवाब देते हैं।

6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर

साहस और शक्ति द्वारा हम अनेक काम पूरा कर सकते हैं| हालांकि इसमें अगर विनम्रता भी जुड़ जाए तो बेहद कारगर साबित होता है| विनम्रता हमें संयमित बनाती है जिससे व्यक्ति को आंतरिक ख़ुशी मिलती है| विनम्रता के भाव से विपक्षी भी उस व्यक्ति का आदर करते हैं| यह व्यक्ति कार्य को और सुगम बनती है|

7. भाव स्पष्ट कीजिए -

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
       पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू||

उत्तर

इन पंक्तियों में लक्ष्मण अभिमान में चूर परशुराम स्वभाव पर व्यंग्य किया है| लक्ष्मण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि आप मुझे बार-बार इस फरसे को दिखाकर डरा रहे हैं| ऐसा लगता है मानो आप फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हों|

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं||
      देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना||

उत्तर

इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी वीरता को बताया है| वे कहते हैं कि हम कुम्हड़े के कच्चे फल नहीं हैं जो तर्जनी के दिखाने से मुरझा जाता है| यानी वे कमजोर नहीं हैं जो धमकी से भयभीत हो जाएँ| वह यह बात उनके फरसे को देखकर बोल रहे हैं| उन्हें स्वयं पर विश्वास है|

(ग) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
     अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||

उत्तर

इन पंक्तियों में विश्वामित्र मन ही मन मुस्कराते हुए सोच रहे हैं कि परशुराम ने सामन्य क्षत्रियों को युद्ध में हराया है तो इन्हें हरा-ही-हरा नजर आ रहा है| राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय नहीं हैं| परशुराम इन्हें गन्ने की बनी तलवार के समान कमजोर समझ रहे हैं पर असल में ये लोहे की बनी तलवार हैं| परशुराम के अहंकार और क्रोध ने उनकी बुद्धि को अपने वश में ले लिया है|

8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर

तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखी गई है। यह काव्यांश रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है। इसमें अवधी भाषा का शुद्ध रुप में प्रयोग देखने को मिलता है। तुलसीदास ने इसमें दोहा, छंद, चौपाई का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है। जिसके कारण काव्य के सौंदर्य तथा आनंद में वृद्धि हुई है और भाषा में लयबद्धता बनी रही है। तुलसीदास जी ने अलंकारो के सटीक प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुंदर व संगीतात्मक बना दिया है। इसकी भाषा में अनुप्रास अलंकार, रुपक अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, व पुनरुक्ति अलंकार की अधिकता मिलती है। इस काव्याँश की भाषा में व्यंग्यात्मकता का सुंदर संयोजन हुआ है।

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9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती हैं-

  • देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं, उनके परिवारजनों तथा दरबारी समाज को प्रसन्न करने के लिए जगमगाते हुए सुंदर चित्रण किए। उन्होंने जीवन के दुखों के नहीं, अपितु वैभव-विलास और सौंदर्य के चित्र खींचे। उनके सवैये में कृष्ण का दूल्हा-रूप है तो कवित्तों में वसंत और चाँदनी को भी राजसी वैभव-विलास से भरा-पूरा दिखाया गया है।
  • देव में कल्पना-शक्ति का विलास देखने को मिलता है। वे नई-नई कल्पनाएँ करते हैं। वृक्षों को पालना, पत्तों को बिछौना, फूलों को झिंगूला, वसंत को बालक, चाँदनी रात को आकाश में बना ‘सुधा-मंदिर’ आदि कहना उनकी उर्वर कल्पना शक्ति का परिचायक है।
  • देव ने सवैया और कवित्त छंदों का प्रयोग किया है। ये दोनों ही छंद वर्णिक हैं। छंद की कसौटी पर देव खरे उतरते हैं।
  • देव की भाषा संगीत, प्रवाह और लय की दृष्टि से बहुत मनोरम है।
  • देव अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग करते हैं।
  • उनकी भाषा में कोमल और मधुर शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए -

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

उत्तर

अनुप्रास अलंकार - 'बालकु बोलि बधौं' में 'ब' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

उत्तर

  • अनुप्रास अलंकार - उक्त पंक्ति में 'क' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
  • उपमा अलंकार  - कोटि कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार है। क्योंकि परशुराम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान बताया गया है।

(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
       बार बार मोहि लागि बोलावा||

उत्तर

  • उत्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हाँक जनु लावा' में उत्प्रेक्षा अलंकार है। यहाँ जनु उत्प्रेक्षा का वाचक शब्द है।
  • पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार  - 'बार-बार' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। क्योंकि बार शब्द की दो बार आवृत्ति हुई पर अर्थ भिन्नता नहीं है।

(घ)लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
     बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु||

उत्तर

उपमा अलंकार

  • उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु में उपमा अलंकार है
  • जल सम बचन में भी उपमा अलंकार है क्योंकि भगवान राम के मधुर वचन जल के समान कार्य रहे हैं।

रुपक अलंकार  - रघुकुलभानु में रुपक अलंकार है यहाँ श्री राम को रघुकुल का सूर्य कहा गया है। श्री राम के गुणों की समानता सूर्य से की गई है।

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