(i) गांधी जी की डाण्डी यात्रा :
गांधी जी ने नमक पर लगने वाले टैक्स का विरोध करने का निर्णय लिया। महात्मा गाँधी का विश्वास था कि पूरे देश को एक करने में नमक एक शक्तिशाली हथियार बन सकता था। ज्यादातर लोगों ने इस सोच को हास्यास्पद करार दिया। ऐसे लोगों में अंग्रेज भी शामिल थे। गाँधीजी ने वायसरॉय इरविन को एक चिट्ठी लिखी। उस चिट्ठी में कई अन्य मांगों के साथ नमक कर को समाप्त करने की मांग भी रखी गई थी। दांडी मार्च या नमक आंदोलन को गाँधीजी ने 12 मार्च 1930 को शुरु किया। उनके साथ 78 अनुयायी भी शामिल थे। उन्होंने 24 दिनों तक चलकर साबरमती से दांडी तक की 240 मील की दूरी तय की। कई अन्य लोग रास्ते में उनके साथ हो लिए। 6 अप्रैल 1930 को गाँधीजी ने मुट्ठी भर नमक उठाकर प्रतीकात्मक रूप से इस कानून को तोड़ा। दांडी मार्च ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। देश के विभिन्न भागों में हजारों लोगों ने नमक कानून को तोड़ा। लोगों ने सरकारी नमक कारखानों के सामने धरना प्रदर्शन किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया। किसानों ने लगान देने से मना कर दिया। आदिवासियों ने जंगल संबंधी कानूनों का उल्लंघन किया।
(ii) गांधी-इरविन समझौता :
गाँधी-इरविन समझौता 5 मार्च, 1931 ई. को हुआ था।गाँधी-इरविन समझौता 5 मार्च, 1931 ई. को हुआ था। महात्मा गाँधी और लॉर्ड इरविन के मध्य हुए इस समझौते को 'दिल्ली पैक्ट' के नाम से भी जाना जाता है।पहला समझौता इस बात हुआ कि हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा. दूसरा समझौता हुआ कि भारतीयों को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया जाएगा. तीसरा समझौता भारतीय शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकते हैं. चौथा और महत्वपूर्ण समझौता था कि आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को उनके पदों पर पुनः बहाल किया जायेगा. इस समझौते की आखिरी मांग थी कि आन्दोलन के दौरान जब्त सम्पत्ति वापस की जाएगी.
वहीं इरविन की तरफ से निम्नलिखित मांग की रखी गई थी :-
• पहली मांग कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जाएगा.
• दूसरी मांग थी कि कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी.
• तीसरी मांग थी कि गांधीजी पुलिस की ज्यादतियों की जांच की मांग छोड़ देंगे.