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आधुनिक भारतीय नारी
दुनिया के कुछ भागों में यह विश्वास प्रचलित है. कि जब परमात्मा ने मानव को उत्पन्न किया तो मानव ने स्वयं को एकाकी पांया, मनुष्य ने परमात्मा से साथी माँगा, परमात्मा ने वायु से शक्ति, सूर्य से गर्मी, हिम से शीत, पारे से चंचलता, तिलियों से सौन्दर्य और मेघ गर्जन से शोर लेकर स्त्री पुरुष की 'शरीरार्द्ध' और वि अर्द्धांगिनी मानी गयी तथा 'श्री' और 'लक्ष्मी' के रूप में वह मनुष्य के जीवन को सुख और समृद्धि से दीप्त और पुजित करने वाली कही गयी, उसका आगमन पुरुष के लिए शुभ, सौरभमय और सम्मानजनक था ।
हिन्दू समाज में कोई भी धार्मिक कार्य बिना पत्नी के सम्पन्न नहीं होता, इसीलिए वह 'धर्मपत्नी' अथवा सहधर्मिणी भी कही जाती है। 'मनु' के अनुसार केवल पुरुष कोई वस्तु नहीं, वह अपूर्ण है। स्त्री, स्वदेह तथा सन्तान ये तीनों ही मिलकर पुरुष (पूर्ण) होता है। गृह को शोभा और सम्पन्नता स्त्री के व्यक्तित्व का विकास एक दूसरे का पूरक है। नारी स्नेह और सौजन्य की प्रतिमा है, त्याग और समर्पण की मूर्ति है, दुष्ट मर्दन में चण्डी, संग्राम में कैकेयी, श्रद्धा में शबरी, सौन्दर्य में दमयन्ती, सुगृहिणी में सीता, अनुराग में राधा, विद्वता में गार्गेयी और राजनीति में लक्ष्मीबाई के तुल्य है। नारी का अपमान. मानवता का सबसे बड़ा अपराध है। उसकी उपेक्षा मनुष्य के अस्तित्व को जर्जर, नीरस और व्यर्थ पर देती है।
शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ नारी को भी स्वच्छन्द परिवेश में श्वाँस लेने का पूर्णसुखद अवसर सुलभ अवश्य हुआ है किन्तु आर्थिक असमानता, शिक्षा के अभाव में ग्रामीण नारियों का जीवन 'चूल्हा चक्की' से ऊपर नहीं उठ सका है और आज भी नारकीय यन्त्रणा ही उनकी हिस्से में है। 'गृहलक्ष्मी' तो ये अवश्य है किन्तु तिजोरी की चाभी पुरुष के पास ही रहती है, 'अन्नूपर्णा' अवश्य हैं वे किन्तु कौन-सी 'सब्जी' बनेगी, पति की ही बात चलती है। धनलोलुपों द्वारा नारी-शरीर का खुला क्रय-विक्रय आज भी सामयिक है। कुछ शहर मर्दों में चाहे वह भाई हो या पति, इस नरक से उबरने की इच्छा भी नहीं मानते । उनका तर्क है कि पेट भरा होने के बाद ही सूझता है कि कौन धंधा सही है, कौन गलत भारत में तमाम शहर ऐसे हैं जहाँ औरतों को आज भी जिन्दा माँस की तश्तरी से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता है। हर शहर में वेश्यालय सिनेमा घरों की तरह हाउस-फूल जा रहे हैं। ये वेश्यायें देह सुख के लिए ऐसा नहीं करतीं, अपितु आर्थिक असमानता एवं दुरावस्था से वे अभिशप्त हैं।
आज भारतीय नारी एक विकृति के दौर से गुजर रही है। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' का गौरव स्खलित हो रहा है। पश्चिम का 'विमेनस लिब' भारत में आयातित होकर भारतीय नारी को पारिवार से, आँगन से, पति से, बच्चों से दूर ले जा रहा है। समाज की सबसे बुनियादी इकाई, परिवार टूट रहा है, स्त्री गृहस्वामिनी बनकर रहना पसन्द नहीं कर रही हैं, वह स्त्री-पुरुष सम्बन्ध तथा विवाह-व्यवस्था को एक दम्भ या भ्रम की संज्ञा दे रही है, विवाह की पारस्परिक संस्था को रद्द करके खुली हवा के झोंके के लिए बेताब है, वह देह और रूप से ज्यादा जुड़ना चाह रही है, मन से कम, इस संसार को वह मौज मनाने के लिए समझ रही है।
भारतीय संस्कृति का परित्याग कर, पश्चिमी अनुकरण कर नारी चैन से नहीं कर सकती है। समाज के साथ-साथ नारी का भी दायित्व है कि अपने प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, अपने आदर्शों के प्रति सचेष्ट रहे । उसे शकुन्तला भी बनना होगा, सीता भी, राधा भी बनना होगा और लक्ष्मीबाई भी, कस्तूरबा भी, सरोजिनी, नायडू भी । भारतीय नारी का आदर्श महान ।
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विज्ञान का चमत्कार
आज विज्ञान के महत्त्व को, उसकी उपादेयता को नकारा नहीं जा सकता है। चाहे वह घर का रसोईघर हो या समर-भूमि; विज्ञान के चमत्कार तथा प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। प्रकृति पर विज्ञान की विजय-यह एक किंवदंती नहीं, एक प्रत्यक्ष सत्य है। चन्द्रमा पर मनुष्य का अभियान, ट्यूब बेबी, रॉकेट, अणुबम आदि विज्ञान की उत्कृष्ट देन हैं। सैकड़ों-हजारों मील लम्बी दूरियाँ भी मनुष्य पैदल ही तय करता था। आज वायुमान के सहारे हम कुछ ही घंटों में भारत से लंदन पहुँच जाते हैं। कभी चन्द्रमा यात्रा की बात कोरी कल्पना समझी जाती थी, परन्तु जब बन्द मानव चन्द्रमा की सतह पर उतरे तो सम्पूर्ण विश्व दाँतों तले ऊँगलियाँ दबाकर रह गया। आज जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जहाँ विज्ञान की किरणें नहीं पहुँची हों।
विज्ञान हमारे लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इसकी उपयोगिता जीवन के हर क्षेत्र में सिद्ध है। क्षण-क्षण, पल-पल हम विज्ञान के चमत्कारों का नजारा देखते हैं, संबंधित कहानियाँ सुनते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का संकेत करके हम उसके महत्त्व की उपादेयता का सहज अनुभव कर सकते हैं । विज्ञान के अद्भुत चमत्कारों ने एक नयी क्रांति पैदा कर दी है, एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
आवागमन के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियाँ विशिष्ट एवं विलक्षण हैं। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक जगह से दूसरी जगह जाना गहनं समस्या था।
आज विज्ञान के कारण इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। रेलगाड़ियाँ, मोटरकार, बसें, वायुयान आदि इतनी तेज सवारियाँ निकल आयी हैं कि बातों-ही-बातों में हम लम्बी-लम्बी दूरियाँ तय कर लेते हैं। तार, टेलीफोन, वायरलेस आदि यंत्रों के आविष्कार के कारण हम घर बैठे मुम्बई, कोलकाता, लंदन में रहनेवाले लोगों से बाते कर लेते हैं। नदी, समुद्र, पहाड़ आज हमारे आवागमन के मार्ग में किसी प्रकार को अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकते ।
चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियों ने संजीवनी बूटी का काम किया है। पुराने जमाने में छोटी-छोटी बीमारी के कारण लोगों की मृत्यु हो जाती थी।
आज शायद ही ऐसा कई रोग है, जिसकी दवा सुलभ नहीं है, जिसका निदान संभव नहीं है। क्या यह विलक्षण चमत्कार नहीं हैं कि विश्व से चेचक, प्लेग, मलेरिया आदि रोगों का उन्मूलन हो गया। आज बड़े-बड़े असाध्य रोगों की भी अच्छी एवं प्रभावकारी औषधियाँ निकल रही हैं। दिन-प्रतिदिन नये-नये प्रयोग हो रहे हैं, नये-नये उपकरण एवं नयी-नयी जीवनरक्षक औषधियाँ निकल रही है। मनुष्य का हृदय विकृत या क्षतिग्रस्त हो जाने पर उसे बदल दिया जा सकता है और मनुष्य को नीं जिन्दगी दी जा सकती ? अंधे को आँखों की रोशनी, विकलांगों के विकृत अंगों में सुधार, दिल और दिमाग में परिवर्तन वैज्ञानिक चमत्कारों की ही देन हैं।
आवागमन या चिकित्सा ही नहीं, प्रायः सभी क्षेत्रों में विज्ञान की बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ सामने आयी हैं। चन्द्रमा पर मानव की विजय से लेकर पाकशालाओं एवं शयनकक्षों में आराम एवं सुख-सुविधाओं की सारी चीजों की व्यवस्था विज्ञान के ही चमत्कार हैं। रेडियो, सिनेमा, टेलिविजन, वीडियो आदि सारी-की-सारी चीजें विज्ञान की ही देन हैं। कम्प्यूटर ने एक नये युग की शुरूआत की है।
प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष होते हैं- श्वेत और श्याम । विज्ञान भी इसका अपवाद नहीं है। विज्ञान यदि वरदान है तो अभिशाप भी बना है। विज्ञान ने यदि हमारे अधरों पर मुस्कुराहट बिखेरी है तो इसने हमारी आँखों में अनुकरण भी संजोये हैं। विज्ञान ने परमाणु बम तथा अनेक गैसों, हथियारों एवं शस्त्रास्त्रों का आविष्कार किया है, जो मानव समुदाय का समूल विनाश करते हैं। हिरोशिमा और नागासाकी पर मानवता के ध्वंस का तांडव नृत्य क्या हम भूल पाये हैं ? स्वयं बमपर्षक जहाज के चालकों ने पश्चाताप किया है।
आज बड़े-बड़े देश परमाणु-शक्ति की खोज इसलिए नहीं कर रहे हैं कि उनका प्रयोग मनुष्य के कल्याण एवं शान्तिपूर्ण प्रयोजनों के लिए किया जायेगा, वरन् उनका प्रयोग मानवता को ध्वस्त करने के लिए किया जायेगा। संहार अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर सभी देश अपनी बजट राशि में वृद्धि कर रहे हैं। बड़े-बड़े देश एवं महाशक्तियाँ इन्हीं संहारक हथियारों के बलबूते पर छोटे तथा कमजोर देश पर अपना आधिपत्य बनाये रखना चाहती है।
इन बम बमों के विस्फोट से निकली विषैली गैसों के कारण वातावरण दूषित हो गया है, अनेकानेक बीमारियाँ फैल रही हैं। विशेषज्ञों का कथन है कि यदि इसी प्रकार ये विषैली गैसें वातावरण को दूषित करती रही तो आनेवाले बच्चे शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकृत होंगे होंगे । मशीन के अधिकाअधिक अविष्कार के कारण बेकारी की समस्या बढ़ती जा रही है। जहाँ मशीनों का अधिक उपयोग हो रहा है, वहाँ मनुष्य बेकार होते जा रहे हैं।
विज्ञान एक वरदान भी है और एक अभिशाप भी । विज्ञान अपने-आपमें न तो अभिशाप है प है और न वरदान । विज्ञान का वरदान होना या अभिशाप होना वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों पर निर्भर करता है। सबसे मूल बात यह है कि हम इसका प्रयोग किस प्रकार तथा किसलिए करते हैं।
यदि हम विज्ञान का प्रयोग मानव-कल्याण के लिए करते हैं तो हमारे लिए सबसे बड़े वरदान है और यदि हम इसका प्रयोग नर-संहार के लिए करते हैं, तो यह मानव-जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।