प्रयोगशाला में फॉर्मेल्डिहाइड बनाना – मेथिल ऐल्कोहॉल के उत्प्रेरित ऑक्सीकरण द्वारा प्रयोगशाला में फॉर्मेल्डिहाइड (HCHO) बनाया जाता है।

विधि – एक फ्लास्क में मेथिल ऐल्कोहॉल लेकर वायु भेजने के लिए तथा वाष्प निकलने के लिए दो नलियाँ लगाई जाती हैं। वायु निकलने वाली नली को प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस से भरी एक नली से जोड़ दिया जाता है, जिसमें से एक अन्य नली जल भरे चूषण पम्पयुक्त फ्लास्क में लगा दी जाती है। मेथिल ऐल्कोहॉल तथा प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस को गर्म करने के लिए दो अलग-अलग बर्नर लगा दिए जाते हैं।

प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस से भरी नली को लाल तप्त होने तक गर्म करके चूषण पम्प द्वारा फ्लास्क की वायु निकाल देते हैं। मेथिल ऐल्कोहॉलयुक्त फ्लास्क में वायु प्रवाहित करते हुए 250°C से 300°C ताप के बीच गर्म करने पर मेथिल ऐल्कोहॉल की वाष्प Pt के सम्पर्क में आती है, जिससे इसके ऑक्सीकरण से फॉर्मेल्डिहाइड गैस बनती है, जो ग्राही के जल में विलेय होता है। फॉर्मेल्डिहाइड गैसयुक्त जलीय विलयन को फॉर्मेलिन कहते हैं। इसमें 40% फॉर्मेल्डिहाइड तथा शेष जल होता है।
(i) सान्द्र NaOH घोल से अभिक्रिया – फॉर्मेल्डिहाइड की सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) के सान्द्र विलयन से क्रिया कराने पर मेथिल ऐल्कोहॉल और सोडियम फॉर्मेट बनता है।

यह अभिक्रिया कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है।
(ii) अमोनिया से अभिक्रिया – फॉर्मेल्डिहाइड सान्द्र अमोनिया के साथ अभिक्रिया करके हेक्सामेथिलीन टेट्राऐमीन बनाती है जिसे हेक्सामीन या यूरोट्रोपिन कहते हैं।
