कठिन शब्दार्थ- बड़ेन को = बड़ों को। लघु = छोटा। न दीजिए डारि = त्याग मत कीजिए। साधे = साधना, ध्यान देना। मूलहिं = जड़ को। सचिबो = सींचना। फूलै-फलै = फलता-फूलता है। अघाय = भरपूर, मनचाहा।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गये हैं। इन दोहों में कवि ने छोटे लोगों के महत्त्व को तथा एक लक्ष्य पर ध्यान दिए जाने का महत्त्व समझाया गया है।
व्याख्या-रहीम कहते हैं-यदि आपकी बड़े लोगों से जान-पहचान हो गई हो, तो अपने छोटे साथियों का त्याग करना या उनकी उपेक्षा करना बुद्धिमानी नहीं है। प्रत्यक्षं देख लो, जहाँ सुई काम आती है वहाँ तलवार कुछ नहीं कर सकती है।
कवि कहता है जो मूल या प्रमुख कार्य है, उसी पर ध्यान देना उचित होता है। जो सब कामों को एक साथ साधने का प्रयत्न करते हैं वे किसी कार्य में सफल नहीं हो पाते हैं। एकमात्र जड़ को सींचने से पूरा वृक्ष भरपूर रूप में फलता-फूलता है। डालों और पत्तों को सींचने से उसके सूख जाने की आशंका बनी रहती है।
विशेष-
(i) सुई और तलवार का उदाहरण प्रस्तुत कर कवि ने छोटों को महत्त्व बड़ी सहजता से स्थापित किया है। अत्यन्त छोटी सुई ही वस्त्रों को सिलकर सभी की शोभा बढ़ाती है। तलवार चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, इस काम को कदापि नहीं कर सकती। अतः जीवन में छोटों का भी बहुत महत्त्व है।
(ii) सरल और सरस ब्रज भाषा में कवि ने बड़ी व्यावहारिक सीख दी है।
(iii) शैली उपदेशात्मक और परामर्शपरक है।
(iv) दृष्टान्त अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है।