कठिन शब्दार्थ-डीठि = दृष्टि। न परन्तु = नहीं पड़ता। समान-दुति = एक जैसी दमक या कान्ति। कनक = सोना। गात = शरीर। भूषन = आभूषण, गहना। कर = हाथ। करकम = कठोर। परसि = छुए जाने पर। पिछाने = पहचाने/जान जाते हैं।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि बिहारी के दोहों में से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने नायिका के शरीर की सुन्दरता या गौरवर्ण का कुछ नए ढंग से वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि बिहारी कहते हैं कि नायिका के गौरवर्ण शरीर पर सोने के गहने दिखाई नहीं पड़ते क्योंकि दोनों की दमक या कान्ति एक जैसी है। जब इसके शरीर को हाथ से स्पर्श किया जाता हैं तब सोने के आभूषण हाथों को कठोर लगते हैं। तभी पता चल पाता है कि नायिका ने शरीर पर सोने के आभूषण पहन रखे हैं।
विशेष-
(i) कवि ने नायिका के गौरवर्ण का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है।
(ii) रीतिकालीन सौन्दर्य-वर्णन की छाप दोहे पर स्पष्ट है।
(iii) कनक-कनक में पुनरुक्ति तथा ‘कर करकस’ और ‘परसि पिछाने’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कनक से गात’ में उपमा अलंकार है।