कवि इस काव्यांश द्वारा बताना चाहता है कि चिड़िया और कविता दोनों ही उड़ान भरती हैं किन्तु चिड़िया की उड़ान कुछ दूर तक होती है। उसकी उड़ान की सीमा है। कविता की उड़ान असीम होती है। भला कविता की घर-घर और देशान्तरों में उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती है। कवितारूपी पंखों को लगाकर जब कवि उंड़ता है तो उसकी कल्पना घरों और देशों की सीमा लाँधती हुई सारे ब्रह्माण्ड को नापने लगती है। वह देश (दूरी) की नहीं काल (समय) की सीमाओं में बँधकर नहीं रहती। बेचारी चिड़िया भला कविता की इस उड़ान को कैसे समझ सकती है। कवि का कहना यही है कि इस यांत्रिकता के युग में भी कविता अपनी इसी विशेषता से जीवित रहेगी और प्रासंगिक भी बनी रहेगी।