कठिन-शब्दार्थ-उड़ान = उड़ना, कल्पना। बहाने = प्रतीक बनाकर। कविता की उड़ान = कविता की असीम पहुँच या प्रभाव। क्या जाने = क्या समझ सकती है। बाहर-भीतर = थोड़ी दूर तक। इस घर उस घर = एक घर से दूसरे घर तक। कविता के पंख = कवि की कल्पनाएँ। माने = अर्थ।।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। इस अंश में चिड़िया के बहाने से कविता की असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कवि के विचारों तथा भावनाओं की कल्पना के पंखों की सहायता से भरी गई उड़ान है। जिस प्रकार चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है, उसी प्रकार कवि भी कल्पना के सहारे कविता में अपने मनोभावों को प्रकट करता है। कवि की कल्पना असीम और अनन्त होती है। उस पर देश और काल का कोई बन्धन नहीं होता। वह अपनी कल्पना के सहारे सम्पूर्ण धरती पर ही नहीं, असीम आकाश में भी उड़ता है। चिड़िया अपने पंखों से उड़ती तो है परन्तु उसकी उड़ान की एक सीमा है। वह एक घर से दूसरे घर के बाहर और भीतर तक ही उड़ती है। कविता जब कल्पना के पंखों से उड़ती है उसमें बाहर-भीतर की कोई सीमा नहीं होती। कविता की इस असीमित विस्तार वाली उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती।
विशेष-
(i) कवि ने कविता के कल्पना की सहायता से भरी जाने वाली उड़ान बताया है। चिड़िया की उड़ान उसकी बराबरी नहीं कर सकती। कवि देशों और समय की सीमाओं को लाँघती हुई, जन-मन को प्रभावित करती रही है।
(ii) चिड़िया आकाश में अपने पंखों के सहारे एक सीमा तक ही उड़ती है परन्तु कविता कल्पना के सहारे लोगों के मन को गहराई तक छूती है। समय तथा स्थान की कोई बाधा उसको रोक नहीं पाती। कविता की जन-मन रंजन की शक्ति असीमित है। चिड़िया की उड़ान के माध्यम से कवि ने कविता के अपूर्व प्रभाव की महिमा प्रकट की है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल, किन्तु गम्भीर अर्थ वाली है। कथन की शैली में लक्षणा शक्ति का पूरा उपयोग हुआ है।
(iv) काव्यांश में ‘कविता की उड़ान ….. क्या जाने’ में वक्रोक्ति अलंकार है।’कविता के पंख लगाकर उड़ने’ में मानवीकरण तथा रूपक है तथा ‘बाहर-भीतर, इस घर उस घर में अनुप्रास अलंकार है।