इस काव्यांश में कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान बताया है। बच्चों के खेलने का अंदाज कविता के खेल की तरह ही है। बच्चे जब खेलने निकलते हैं तो वे इस पर ध्यान ही नहीं देते कि वे किस घर से किस घर में खेलने जा रहे हैं। बच्चों के मन में अपना-तेरा का भाव नहीं होता। इसी प्रकार जब कवि की कल्पना के सहारे कविता खेलने निकलती है तो वह भी बिना किसी भेद-भाव के घरों और देशों की सीमा में बँध कर नहीं रहती। कविता मुक्त भाव से सभी को अपना आनन्द लुटाया करती है। कविता किसी देश के कवि की हो वह सभी देशों में आदर और प्रेम पाया करती है।