कवि एक सीधी सी बात कहना चाहता था पर वह बात को भारी-भरकम बनाने के चक्कर में पड़ गया। वह चाहता था कि उसका कथन बड़े प्रभावशाली रूप में सामने आए। परन्तु इस बेतुके प्रयास में उसकी ‘बात’ भाषा के दिखावे के कारण अस्पष्ट रह गई। उसने बात को स्पष्ट करने के लिए भाषा पर तरह-तरह के प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। उसकी शब्दावली को आगे-पीछे किया। शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा, उन्हें इधर से उधर रख कर देखा। असल में कवि चाह रहा था कि या तो बात इस तरह स्पष्ट हो जाए या फिर वह भाषा के दबाव से बाहर आ जाए। लेकिन हुआ उल्टा। जितना-जितना कवि ने भाषा में बदलाव लाने की चेष्टा की बात’ उतनी ही अस्पष्ट होती चली गई। कवि के कहने का आशय यह है कि सीधी-सादी बात को सीधे-सादे शब्दों के द्वारा कहा जाना ही ठीक रहता है। जब कोई शब्दों के आडम्बर का प्रयोग करता है तो वह अपना आशय सही रूप में दूसरों तक नहीं पहुँचा पाता है।