कठिन शब्दार्थ-जादू = आकर्षण। जकड़ = पकड़ा। जाल। लू = गरम हवा। भीतर = अन्दर, पेट में। लूपन = गर्मी का प्रवाह। लक्ष्य = उद्देश्य। फैला-का-फैला = प्रदर्शित, विज्ञापित। घाव देना = अनुचित प्रभाव डालना। कृतार्थ = कृतकृत्य, आभारी॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक ने बताया है कि बाजार में प्रबल आकर्षण होता है। बाजार का जादू उसको जकड़ लेता है। इससे बचने के लिए लेखक कहता है कि बाजार जाते समय मन खाली न हो॥
व्याख्या-लेखक कहता है कि बाजार का आकर्षण एक तरह की जकड़न होती है। उससे बचने का एक सरल तरीका है कि बाजार जाते समय मन खाली न हो। आशय यह है कि बाजार जाने वाले को यह पता होना चाहिए कि उसको क्या चाहिए यदि बाजार जाने वाले को अपनी जरूरत की चीजों का सही पता न हो तो उसको बाजार जाना ही नहीं चाहिए। गर्मी के मौसम में जब लू चलती है तो घर से बाहर जाने वाले को उसके दुष्प्रभाव से बचाव करना पड़ता है। अन्यथा वह बीमार पड़ सकता है। लू से बचने के लिए खूब पानी पीकर। बाहर जाते हैं। जब शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है तो लू नहीं लगती। खूब पानी पीकर बाहर जाना लू के बुरे प्रभाव से रक्षा करता है।
यदि ग्राहक को अपने उद्देश्य अर्थात् जरूरत की चीज का ठीक से पता है तो बाजार का अनुचित आकर्षण उसको प्रभावित नहीं कर पाता। वह तरह-तरह की चीजों को वहाँ देखकर उन्हें नहीं खरीदता और फिजूलखर्ची से बचा रहता है। अपनी जरूरत की चीजें बाजार से खरीदकर उसको प्रसन्नता ही होती है। उस अवस्था में बाजार अपने ग्राहक का आभारी होता है कि उसने बाजार को सही और उपयोगी बनाया। दूसरे, बाजार को कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ ही प्राप्त होता है। बाजार का महत्व और उपयोगिता यह है कि वह ग्राहक को उसकी आवश्यकता की वस्तु उपलब्ध कराये, उसकी जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो। ग्राहक को अपने आकर्षण में फंसाकर अनावश्यक खरीदारी के लिए प्रेरित करना अनुचित है।
विशेष-
1. बाजार की उपयोगिता लोगों की जरूरत की चीजें उनको उपलब्ध कराने में है।
2. विज्ञापन के द्वारा चीजों का अनावश्यक प्रचार बाजार का अनुचित उपयोग है।
3. भाषा बोधगम्य तथा विषयानुरूप है।
4. शैली विचार विवेचनात्मक है।