पाँच दोस्त थे। काम कुछ करते नहीं थे। सुबह-शाम खाना तथा पीने को भाँग जरूरी थी। एक दिन उनकी पत्नियों तथा कुछ लोगों ने उनसे कहा-सुना, तो शर्म के कारण उन्होंने परदेश जाकर कुछ काम करने का विचार किया। रास्ते में रात होने पर एक मंदिर में सो गए। सुबह उठकर उनमें से एक ने गिनती की, तो वे चार थे। उनका एक साथी नहीं था। वे रोते हुए जा रहे थे। एक समझदार आदमीने उनसे कारण पूछा फिर गिनकर बताया कि वे पूरे पाँच थे। सच्चाई यह थी कि गिनने वाला अपने को नहीं गिनता था। इस कहानी का उल्लेख लेखक ने निरुद्देश्य नहीं किया है। वह बताना चाहता है कि मनुष्य घर-परिवार के बारे में सोचता है, समाज के बारे में सोचता है, देश के बारे में सोचता है और पूरी दुनियां के बारे में भी सोचता है, परन्तु वह अपने बारे में नहीं सोचता। मनुष्य का अधिकार है कि वह अपने बारे में सोचे। अच्छे काम करे, जिनको देखकर दूसरे लोग प्रेरित हों । सोच-विचार कर काम करना ही मनुष्य की पहचान है, जो बिना विचारे जैसी हवा चल रही हो, उसी के अनुसार बह जाता है, वह पशु होता है। अत: मनुष्य का कोई काम करने से पहले सोचना चाहिए।
इस कहानी का लेखक ने इसी उद्देश्य से उल्लेख किया है।