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मैं और मैं महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ।

मेरे कानों में पड़ा फ्रेश स्टार्ट-इनका अर्थ होता है-नया ताजा आरंभ। सुनते ही एक नई ताजगी अनुभव हुई और मैंने सोचा कि हर नया आरंभ अपने साथ एक ताजगी, एक तेजी, एक स्फुरण लिए आता है।

तभी याद आ गए मुझे फिर कौशल जी, जो जीवन में बार-बार असफल होकर भी थके नहीं, ऊबे नहीं, और बराबर आगे बढ़ते रहे और आज ही पहली बार मेरी समझ में आया उनकी उस अपराजित वृत्ति का रहस्य। यह रहस्य है-नया ताजा आरंभ। वे हारे, पर हार कर रुके नहीं और इस न रुकने में ही उनकी सफलता का रहस्य छिपा हुआ है।

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कठिन-शब्दार्थ-ताजगी = फुर्ती। स्फुरण = स्फूर्ति, ताजगी। ऊबना = बेचैन होना। अपराजित = कभी न थकने वाला। वृत्ति = स्वभाव। रहस्य = भेद।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित “मैं और मैं” शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।

श्री सिंहल ने लेखक से कहा कि वह उनकी मोटरें जितने में बिकें उतने में बेच दे, जिससे वह कारखाने के मामले से निपट कर फ्रेश स्टार्ट ले सके। 

व्याख्या-लेखक कहता है कि उसने अपने कानों से फ्रेश स्टार्ट शब्द सुना। इस शब्द का अर्थ है नया और ताजा कार्य आरम्भ करना। फ्रेश स्टार्ट शब्द सुनकर लेखक को ताजापन का अनुभव हुआ तथा उसका आलस्य भाव दूर होता दिखा। उसने विचार किया कि प्रत्येक नवीन कार्य के साथ मनुष्य को एक प्रकार की ताजापन, तेजी तथा स्फूर्ति प्राप्त होती है। उसी समय लेखक को कौशल जी को याद आ गई। वह जीवन में अनेक बार असफल हुए, किन्तु न थके न ऊबे अपितु बराबर आगे ही बढ़ते रहे। कौशल जी की इस कभी भी हार न मानने वाली प्रवृत्ति का रहस्य लेखक सिंहल जी के फ्रेश स्टार्ट शब्द को सुनकर समझा। ताजा आरम्भ में ही कौशल जी की अथक वृत्ति का रहस्य छिपा है। वह थके और हारे, परन्तु हारकर रुके नहीं। नए कार्य आरम्भ किए और आगे बढ़ते रहे। न रुकने में ही उनकी कभी हार न मानने की प्रवृत्ति का रहस्य छिपा है।

विशेष-
(i) नया कार्य आरम्भ होने पर मनुष्य का मन स्फूर्ति से भर जाता है। उसमें नवीन ऊर्जा पैदा होती है।
(ii) हार कर भी न रुकने वाला मनुष्य जीवन में कभी परास्त नहीं होता।
(iii) भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली विचारात्मक है।

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