बिम्ब शब्द का प्रयोग साहित्य में काव्य-बिम्ब के लिए होता है। हिन्दी में बिम्ब शब्द का प्रयोग अंग्रेजी ‘इमेज’ शब्द के पर्याय रूप में किया जाता है।
‘गौरा’ रेखाचित्र में बिम्ब शैली को अपनाया गया है। गौरी की और लालमणि का जो शब्द चित्र महादेवी जी ने र्वीचा है वह एक बिम्ब उपस्थित करता है। गौरा स्वस्थ है। गौर वर्ण है जिसके रोमों में एक विशेष प्रकार की चमक है। लगता है जैसे किसी ने अभ्रक का चूर्ण मल दिया है जो प्रकाश में विशेष रूप से चमकने लगता है। उसका शरीर एक साँचे में ढला हुआ है। उसके पैर पुष्ट लचीले हैं, पुट्टे भरे हुए हैं, चिकनी भरी पीठ है, गर्दन लम्बी सुडौल है, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग हैं, भीतर की लालिमी की झलक देते हुए कमल की अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान हैं, लम्बी पूँछ है जिसके छोर पर काले-काले बाल हैं। इस वर्णन को पढ़कर गौरा बछिया का रूप सामने आ जाता है। यदि तूलिका से चित्र बनाना चाहें तो इसे पढ़कर चित्र भी बनाया जा सकता है। वर्णन से मानस-पटल पर एक बिम्ब उभर आता है।
ऐसा ही बिम्बात्मक वर्णन लालमणि का है। उसको वर्ण लाल है जो गेरू के पुतले जैसा जान पड़ता है। माथे पर पान के आकार का सफेद टीका है। चारों पैरों के खुरों पर सफेद वलय हैं। ऐसा लगता है गेरू की वत्समूर्ति को चाँदी के आभूषणों से सुशोभित कर दिया गया हो।
गौरा हाथ फेरने पर महादेवी के कन्धे पर अपनी मुख रख देती। वही गौरा अन्तिम समय में महादेवी के कन्धे पर सिर रखकर पत्थर के समान भारी होकर धरती पर सरक गई । इस वर्णन को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है मानो हम इस दृश्य के प्रत्यक्षदर्शी हों।
इससे स्पष्ट है कि रेखाचित्र में बिम्ब शैली का सार्थक प्रयोग हुआ है।