कठिन शब्दार्थ – अति = अत्यन्त, बहुत । सूधो = सीधा, छल रहित । सनेह = प्रेम। नेकु = थोड़ा भी। सयानप = सयानापन, चतुराई। बाँक = टेढ़ापन, सरल स्वभाव न होना। तहाँ = उस, प्रेम पथ पर। साँचे = सच्चे, निष्कपट । तजि = त्याग कर। आपनपौ = अहंकार। झझकें = झिझकते हैं, चलने से डरते हैं। कपटी = मन स्वच्छ नहीं, दुराव या छिपाव रखने वाले । निसांक = जिनके मन में शंका रहती है। यहाँ = इस प्रेम सम्बन्ध में । एक ते दूसरो = एक से आगे, दो की संख्या । आँक = अंक, संख्या । पाटी = शिक्षा, गणित । मन = एक पुरानी तोल जो लगभग 37 किलो के बराबर होती थी। छटाँक = लगभग पचास ग्राम की तोल ।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि घनानंद के छंदों से लिया गया है। कवि ने इस छंद में अपनी प्रिया सुजान को उसके स्वार्थी स्वभाव पर व्यंग्य करते हुए, तीखा उलाहना दिया है।
व्याख्या – कवि सुजान को सम्बोधित करते हुए कहता है-प्यारे सुजान ! यह प्रेम का मार्ग बड़ा सीधा है। इसमें सयानेपन और छल-कपट को कोई स्थान नहीं है। यही कारण है कि सच्चे प्रेमी इस पथ पर अहंकार को त्यागकर चला करते हैं। वे अपने अस्तित्व को अपने प्रिय से एकाकार कर देते हैं। इसके विपरीत, जिनके मन में कपट होता है, वे छलिया इस प्रेमपथ बढ़ते हुए घबराते हैं, उन्हें शंका रहती है कि कहीं उनका भेद न खुल जाय। प्यारे सुजान ! इस प्रेम के गणित में एक से आगे कोई अंक ही नहीं होता है। प्रिय और प्रेमी में कोई भेद ही नहीं रह जाता है। दोनों एक हो जाते हैं परन्तु लगता है तुमने तो किसी महागुरु से कोई नई ही पाटी पढ़ी है। जो मन भर लेना तो सिखाती है पर छटाँक भर लौटाना नहीं सिखाती। भाव यह है कि कवि सुजान के स्वार्थमय व्यवहार से अत्यन्त आहत है। जिसने उससे तो सर्वस्व समर्पण चाहा पर स्वयं उसे बदले में केवल पछतावा ही दिया है। उसके साथ विश्वासघात किया। वह प्रेम का नाटक ही करती रही।
विशेष –
- कवि घनानंद का असफल प्रेम-प्रसंग बड़ा मर्मभेदी है। उन्होंने एक ऐसी नारी से प्रेम चाहा, जो प्रेम का व्यापार करने वाली दरबारी सुंदरी थी। घनानंद उसे नहीं भुला पाए, किन्तु उसने कभी उन्हें भूलकर भी याद नहीं किया। प्रेम की यही पीर कवि के छंदों में सर्वत्र छलक रही है।
- भाषा भावानुकूल है। प्रस्तुतीकरण भावुकता में सराबोर है।
- सरल भाषा में, प्रेम के मार्ग की ऐसी मार्मिक व्याख्या कम ही कवियों ने की होगी।