यदि प्रत्येक संधारित्र की पहली प्लेटो को एक बिंदु से जोड़कर आवेशित किया जाये तथा दूसरे प्लटो को एक बिंदु से जोड़कर भू-सम्पर्कित किया जाये तो इस प्रकार के संधारित्रों के समूहन को समांतर समूहन कहते है।
चित्र में, तीन संधारित्रों का समांतर समूहन दर्शाया गया है जिनकी धारिताएं क्रमश: `C_(1), C_(2)` व `C_(3)` है। जब आवेश `+Q` बिंदु A पर दिया जाता है, तो वह तीनो संधारित्रों में उनकी धारिताओ के अनुपात में बँट जाता है।
यदि संधारित्रों को क्रमश: `Q_(1), Q_(2)` व `Q_(3)` आवेश प्राप्त हो, तो
`Q + Q_(1) + Q_(2) + Q_(3)`….(1)
चूँकि प्रत्येक संधारित्र की दोनों प्लेटो के बीच विभवांतर A और B के बीच विभवांतर V होगा। अब
`Q_(1) = C_(1) V, Q_(2) = C_(2)V, Q_(3) = C_(3)V`
अब समी (1) से,
`Q = C_(1)V + C_(2)V + C_(3)V`
`Q = (C_(1) + C_(2) + C_(3)) V`
अब यदि परिणामी विद्युत धारिता `C_(p)` हो, तो
`Q = C_(p)V`
अत: `C_(p) V = (C_(1) + C_(2) + C_(3))V`
`rArr C_(p) = C_(1) + C_(2) + C_(3)`
यही समांतर समूहन में परिणामी धारिता का सूत्र है।