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भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के मुख्य कारण बताइए।

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18वीं शताब्दी के अंत तक भारत आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न तथा समृद्ध देश था। यहाँ के कृषकों, शिल्पकारों तथा व्यापारियों की कार्यकुशलता विश्वभर में प्रसिद्ध थी। भारतीय औद्योगिक आयोग, 1916 ने लिखा है-“जिस समय आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था के उद्गम पश्चिमी यूरोप में असभ्य जातियाँ निवास करती थीं, भारत अपने शासकों के वैभव तथा शिल्पकारों की उच्चकोटि की काना हेतु विख्यात था।” परंतु 19वीं शताब्दी की अनेक घटनाओं ने हमारे उद्योगों व हस्तकलाओं को प्रायः नष्ट कर दिया। डॉ० गाडगिल के अनुसार, 1880 तक भारतीय उद्योगों का पराभव हो चुका था। भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

1. राजदरबारों की समाप्ति- सामान्यतः राजा, महाराजा और सामंत लोग हस्तकलाओं के पारखी हुआ करते थे। उनके संरक्षण में ही भारतीय उद्योग फले-फूले थे। ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ इनकी स्थिति दयनीय होती गई और हस्तकलाओं का पराभव होने लगा।
2. रुचि व फैशन में परिवर्तन- धीरे-धीरे भारतीय पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होने लगे। उनकी रुचि और फैशन में परिवर्तन के साथ-साथ, इनकी माँग के स्वरूप में भी परिवर्तन होने लगा। इससे स्वदेशी उद्यागों को धक्का लगा।
3. शिल्पकारों पर अत्याचार- ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त ठेकेदार शिल्पकारों पर भयानक अत्याचार करते थे। बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर उत्पाद खरीदना सामान्य बात थी। प्रशासन का अधिकार मिलने पर दमन व शोषण की यह प्रक्रिया और तीव्र हो गई। इससे परेशान होकर अनेक शिल्पकारों ने यह कार्य ही छोड़ दिया।
4. इंग्लैण्ड में भारतीय वस्तुओं के आयात पर रोक– भारत से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर बहुत अधिक कर लगा दिए गए। ये कर 50 प्रतिशत से 400 प्रतिशत तक थे। रेशमी वस्त्रों का आयात पूर्णतः बंद कर दिया गया।
5. दोषपूर्ण आर्थिक एवं औद्योगिक नीति– ब्रिटिश सरकार ने अपनी आर्थिक और औद्योगिक नीति का निर्माण इस प्रकार किया जिससे भारतीय उद्योगों पर कुठाराघात हो। उदाहरण के लिए मुक्त व्यापार नीति, भारी आयात-निर्यात कर एवं भारी अंतर्राज्यीय करों ने भारतीय उद्योगों को अत्यधिक क्षति पहुँचाई। :
6. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव- जैसे-जैसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार होता गया। देश का धनी वर्ग ब्रिटिश प्रशासकों का कृपापात्र बनने के लिए पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने लगा। वह भारतीय माल की अपेक्षा विदेशी माल का उपयोग करने लगा और भारतीय उत्पादों की माँग देश में कम हो गई।
7. विदेशी वस्तुओं से प्रतियोगिता में असफल- इंग्लैण्ड के आधुनिक उद्योगों में प्रयुक्त मशीनों से उत्पन्न माल के समक्ष परम्परागत तकनीक से निर्मित भारतीय माल न ठहर सका। इसका कारण यह था कि मिल में बनी वस्तुएँ सस्ती, गुण में अच्छी और अधिक टिकाऊ थीं।
8. शिल्पकला का ह्रास– विदेशी वस्तुओं के समक्ष प्रतियोगिता में न ठहर पाने के साथ-साथ स्वदेशी वस्तुओं के गुण, स्तर, किस्म और आकर्षण में कमी आने लगी। दुर्भाग्य से इसी समय भारतीय सामंतशाही स्वदेशी वस्तुओं को ही घृणा की दृष्टि से देखने लगी। इसका भारतीय उद्योगों पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
9. सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति- भारत में ब्रिटिश सरकार ने न केवल यहाँ के उद्योगों के प्रति उपेक्षा दिखाई अपितु अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें नष्ट भी किया। देश का कच्चा माल इंग्लैण्ड भेजा जाने लगा और उसी कच्चे माल से निर्मित माल वहाँ से देश में आने लगी। आंतरिक व्यापार को नष्ट करके विदेशी व्यापार में वृद्धि की गई और भारत सरकार भारत की प्रगति के बारे में तटस्थ तथा निष्क्रिय बनी रही। इस प्रकार धीरे-धीरे भारतीय हस्तकलाओं का ह्रास होता गया।

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