अनेक विद्वानों ने ‘शिक्षा’ की प्रक्रिया की व्याख्या उसके व्यापक अर्थ में की है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा ज्ञान प्राप्ति के माध्यम के रूप में एक अति व्यापक एवं जटिल प्रक्रिया है। इस रूप में शिक्षा जन्म के साथ ही प्रारंभ हो जाती है तथा जीवन भर निरंतर चलती रहती है। काल या अवधि के ही समान इस अर्थ के अनुसार शिक्षा प्रदान करने अथवा ग्रहण करने का क्षेत्र भी सीमित नहीं होता अर्थात् शिक्षण का क्षेत्र शिक्षा संस्थाओं तक ही सीमित नहीं होता बल्कि पूरा का पूरा जगत् ही शिक्षा ग्रहण करने एवं शिक्षा प्रदान करने का क्षेत्र है। शिक्षा की इस व्यापक व्याख्या को मैकेंजी ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “विस्तृत अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है तथा जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भंडार में वृद्धि होती है। व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार के अनुभव जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से प्राप्त करता है। ये अनुभव किसी भी व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि केवल विद्यालय या किसी अन्य शिक्षा संस्था के अध्यापक ही शिक्षक नहीं होते बल्कि प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में शिक्षक की भूमिका निभा सकता है। जिस भी व्यक्ति से कोई नई बात सीखी जाए, वही व्यक्ति उस संदर्भ में शिक्षक है। इस तथ्य को स्वीकार कर लेने पर कोई बालक भी किसी प्रौढ़ व्यक्ति के लिए शिक्षक सिद्ध हो सकता है। बालक ही क्या, पर्यावरण से भी अनेक बातें सीखी जा सकती हैं। अत: पर्यावरण भी हमारे लिए शिक्षक ही है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा के संकुचित अर्थ से भिन्न शिक्षा के व्यापक़ अर्थ के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य भी अति व्यापक है। इस दृष्टिकोण से शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है, न कि विभिन्न स्तरों के प्रमाण-पत्र प्राप्त करना। इस प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है। इस तथ्य को एडलर (Adler) ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से संबंधित क्रिया है, यह केवल छोटे बालकों से ही संबंधित नहीं होती। यह तो जन्म से ही प्रारंभ होती है और मृत्यु तक चलती रहती है।”