भाव या अनुभूति (Feeling) का सम्बन्ध मानव-जीवन के भावात्मक पहलू से है। भाव प्राणी को सुख-दुःख की अनुभूति कराने वाली एक ऐसी प्रारम्भिक सरल मानसिक प्रक्रिया है जिसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। इच्छाओं की सन्तुष्टि से सुख का भाव तथा उसमें बाधा पड़ने पर दु:ख का भाव पैदा होता है। वस्तुतः मन के इच्छात्मक या चेष्टात्मक एवं ज्ञानात्मक, दोनों पहलुओं के माध्यम से भाव का अनुभव होता है। अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने दो प्रकार के भाव बताये हैं-सुखद तथा दु:खद। रॉयस ने इसके साथ एक तीसरा भाव उद्दीप्त एवं शान्त, भी जोड़ दिया है। वुण्ट ने भावों का त्रि-दिशात्मक सिद्धान्त प्रस्तुत किया है–सुखद-दु:खद, उद्दीप्त-शान्त तथा विक्षेप-विराम। तथ्य यह है कि सुखद और दुःखद, इन दोनों भावों के अलावा अन्य किसी प्रकार के भाव को प्रयोगात्मक परिणामों के आधार पर सत्य सिद्ध नहीं किया जा सका।