[ अधर = नीचे का होंठ। ओठ-डीठि-पट जोति = होंठों की लाल, दृष्टि की श्वेत, वस्त्र की पीत कान्ति। ]
प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की हरे रंग की बाँसुरी का इन्द्रधनुषी रूप वर्णित किया गया है।
व्याख्या-श्रीकृष्ण अपने रक्त वर्ण के होठों पर हरे रंग की बाँसुरी रखकर बजा रहे हैं। उस समय उनकी दृष्टि के श्वेत वर्ण, वस्त्र के पीत वर्ण तथा शरीर के श्याम वर्ण की कान्ति रक्त वर्ण के होठों पर रखी हुई हरे रंग की बाँसुरी पर पड़ने से वह (बाँसुरी) इन्द्रधनुष के समान बहुरंगी शोभा वाली हो गयी है।
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ बिहारी के रंगों के संयोजन का अद्भुत ज्ञान प्रस्तुत दोहे में परिलक्षित होता है।
⦁ भाषा-ब्रज।
⦁ शैली-मुक्तक।
⦁ रस-भक्ति।
⦁ छन्द-दोहा
⦁ अलंकार-दोहे में सर्वत्र अनुप्रास, अधर धरत’ में यमक तथा बाँसुरी के रंगों से इन्द्रधनुष के रंगों की तुलना में उपमा।
⦁ गुण–प्रसाद।।