दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा को तीन उपशाखाओं में बाँटा जा सकता है-
⦁ पश्चिमी घाट को प्रभावित करने वाली शाखा
⦁ विंध्या-सर्तपुड़ा मध्य शाखा
⦁ सौराष्ट्र-कच्छ शाखा।
1. पश्चिमी घाट शाखा – अरब सागर शाखा जब दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर गतिशील होती है, तो पश्चिमी घाट उसके मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं। यहाँ इन पवनों को बाध्य होकर ऊपर चढ़ना पड़ता है। इस प्रक्रिया में संघनन बहुत तेजी से होता है। फलतः पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा होती है। यह देश के अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। पश्चिमी घाट के पूर्वी भागों में ये पवनें बहुत कम वर्षा कर पाती हैं। पश्चिम तटीय भागों में दक्षिण से उत्तर की ओर कम वर्षा होती है। मालाबार तट अधिक वर्षा प्राप्त करता है, जबकि कोंकण तट पर कम वर्षा होती है।
2. विंध्या-सतपुड़ा मध्य शाखा – यह शाखा विंध्या और सतपुड़ा पर्वतों के मध्य में होकर अपना मार्ग बनाती है। नर्मदा घाटी को पार कर छोटानागपुर तथा राजमहल की पहाड़ियों तक पहुँचाती है। इस क्षेत्र में पहुँचकर यहाँ अपेक्षाकृत अधिक वर्षा करने में समर्थ होती है। इस शाखा से पश्चिम से पूर्व की ओर वर्षा कम होती जाती है।
3. सौराष्ट्र-कच्छ शाखा – यह शाखा गुजरात तथा राजस्थान से होकर पंजाब के मैदान तक पहुँचती है। इसके मार्ग में अरावली का विस्तार पवनों के समानांतर है। अतः यह शाखा बेरोक-टोक हिमालय प्रदेश के पर्वतीय भागों तक पहुँचती । है। यहाँ हिमालय से अवरोध पाकर कश्मीर, पंजाब तथा हरियाणा में सामान्य वर्षा करने में समर्थ होती है।