(क) माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन।
(ख) गान अर्पित, प्राण अर्पित।
(ग) स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
(घ) माँज दो तलवार को लाओ न देरी,
बाँध दो अब पीठ पर वह ढाल मेरी,
भाल पर मल दो चरण. की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।