हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध के सिद्धांत हेनरी फेयोल द्वारा दिये गये प्रबंध के सिद्धांतों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है।
(1) कार्य विभाजन का सिद्धांत:
यह इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति सभी कार्यों को कुशलता से नहीं कर सकता है। अतः संगठन में प्रत्येक व्यक्ति को उसके ज्ञान, योग्यता, अनुभव एवं दक्षता के आधार पर कार्य सौंपना चाहिए। फलस्वरूप उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, उत्तरदायित्व झेलने में आसानी होती है और कम खर्च में अधिक कार्य भी होता है। यह सिद्धांत प्रबंधकीय एवं तकनीकी सभी कार्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है।
(2) अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, “अधिकार आदेश देने एवं सम्मान प्राप्त करने की शक्ति है।” अत: अधिकार एवं दायित्व के सिद्धांत से आशय संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार एवं दायित्व की स्पष्ट व्याख्या करने और प्रत्येक व्यक्ति को समुचित अधिकार तथा उत्तरदायित्व सौंपने से है। अतः अधिकार उत्तरदायित्व के अनुरूप होने चाहिए क्योंकि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू के समान होते हैं। चूँकि अधिकार एवं दायित्व संगठन के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक होते हैं, इसलिए इनका भारार्पण क्षमता के अनुसार सोच-समझकर किया जाना चाहिए।
(3) अनुशासन का सिद्धांत:
अनुशासन कार्य के प्रति रुचि एवं दायित्व के प्रति जागरूकता का आधार होता है। अधीनस्थों द्वारा नेतृत्व को चुनौती एवं संस्था की नीतियों की अवहेलना या विरोध अनुशासनहीनता का प्रतीक है। अत: कर्मचारियों में आज्ञाकारिता, अधिकारियों के प्रति सम्मान की भावना एवं समझौते की शर्तों के अनुसार व्यवहार करना आवश्यक है लोयोल के अनुसार संगठन में अनुशासन बनाए रखने के लिए ये प्रयास किए जाने चाहिए (i) सभी स्तरों पर अच्छे पर्यवेक्षक हों, (ii) स्पष्ट एवं निष्पक्ष समझौते हों, (iii) पुरस्कार एवं सजाओं का न्यायिक क्रियान्वयन हो।
(4) आदेश की एकता का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, “एक कर्मचारी को केवल एक ही अधिकारी द्वारा आदेश प्राप्त होने चाहिए।” अर्थात् एक अधीनस्थ को एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त होना चाहिए क्योंकि दो अधिकारियों से एक साथ आदेश मिलने से किसी एक के आदेश का ही पालन हो पाएगा और दूसरे की अवज्ञा ही होगी, और अनुशासनहीनता फैलने का भी डर रहता है।
(5) निर्देश की एकता का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार समान उद्देश्य रखने वाली क्रियाओं के समूह को एक ही योजना तथा एक ही अध्यक्ष द्वारा (One head, One Plan) निर्देशित किया जाना चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि एक योजना के संबंध में एक व्यक्ति का ही प्रबंध, निर्णय एवं निर्देशन होना चाहिए ताकि कार्य की एकता (Unity of Action), समन्वय एवं प्रयासों का केन्द्रीकरण होना चाहिए।
(6) व्यक्तिगत हितों के स्थान पर सामान्य हित को सर्वोच्चता का सिद्धांत:
प्रबंध के इस सिद्धांत की यह मान्यता है कि व्यक्तिगत हितों की तुलना में सामान्य हितों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। फेयोल के अनुसार, “व्यक्तिगत हित, सामान्य हितों के अधीन होते हैं।” यद्यपि व्यक्तिगत एवं सामूहिक हितों में समन्वय रखना प्रबंधकों का प्रमुख दायित्व है, फिर भी इनमें अवरोध उत्पन्न हो जाए तो सामूहिक हितों की रक्षार्थ व्यक्तिगत हितों को समर्पित कर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त फेयोल ने इसके लिए ये उपाय बताए हैं।
- अधिकारियों को अपने व्यवहार में दृढ़ता लानी चाहिए और अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए,
- आपसी ठहराव, जहाँ तक संभव हो, न्यायोचित होना चाहिए, एवं
- निरीक्षण की निरन्तर व्यवस्था होनी चाहिए।
(7) पारिश्रमिक का सिद्धांत:
पारिश्रमिक के सिद्धांत के अनुसार कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के प्रतिफलस्वरूप पर्याप्त, समुचित, न्यायपूर्ण एवं संतोषजनक पारिश्रमिक प्रदान करना चाहिए ताकि वे पूर्ण लगन, निष्ठा एवं रुचि से कार्य करें। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को पारिश्रमिकों के साथ-साथ अमौद्रिक प्रेरणाएँ भी देनी चाहिए। परिणामस्वरूप वे स्थायी रहकर कार्य कर सकें।
(8) केन्द्रीकरण का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, अधिकारों का केन्द्रीकरण न अच्छा है और न ही बरा, इसकी मात्रा उपक्रम की प्रकृति, प्रबंध के मूल्य एवं अधीनस्थ कर्मचारियों की योग्यता आदि पर निर्भर करती है। याद उपक्रम का आकार छोटा है तो प्रबंधकों में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इसके विपरीत यदि उपक्रम का आकार बड़ा है तो अधिकारों का विकेन्द्रीकरण आवश्यक होगा। अतः प्रबंधकों को संगठन के सफल संचालन हेतु अधिकारों के केन्द्रीय रूप तथा विकेन्द्रीकरण में एक सर्वोत्तम अनुपात (Optimum Proportion) रखना चाहिए।
(9) सोपानिक श्रृंखला का सिद्धांत:
स्केलर चेन के सिद्धांत का तात्पर्य उच्चाधिकारियों से निम्नाधिकारियों के मध्य संपर्क में आने वाले किसी भी अधिकारी का उल्लंघन (By pass) या अनादर नहीं करना चाहिए। ऐसा न होने पर असंतोष फैलता है एवं असहयोग की भावना बढ़ती है।

इस रेखाचित्र में A सर्वोत्तम स्तर पर है एवं उसके अधीन BCDE एवं FGHI है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि D, H को सूचना देना चाहता है या H, D से संपर्क करना चाहता है क्रम नीचे से ऊपर होता हुआ करना होगा। लेकिन यह उचित नहीं है। ऐसी दशा में उच्चाधिकारियों की अनुमति से प्रत्यक्ष संपर्क किया जा सकता है जिसे फेयोल पुल कहा जाता है।
(10) व्यवस्था का सिद्धांत:
फेयोल ने कहा कि, प्रत्येक वस्तु एवं मनुष्य का स्थान निश्चित ही नहीं होना चाहिए अपितु वह वस्तु एवं मनुष्य उसी स्थान पर रहने चाहिए। ऐसा करने से वस्तुओं का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को वस्तुएँ ढूँढने की आवश्यकता नहीं होगी और शीघ्र ही वे वस्तुएँ मिल जाएंगी। परिणामस्वरूप क्रियाओं के निष्पादन की व्यवस्था बनी रहेगी।
(11) समता का सिद्धांत समता का सिद्धांत:
कर्मचारियों के साथ न्याय, सहानुभूति एवं समानता का व्यवहार करने पर बल देता है। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों के साथ पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद का सर्वथा परित्याग करके, निष्पक्ष, मित्रतापूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखे। फलस्वरूप प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के मध्य विश्वास की भावना होगी और उनकी निष्ठा का स्तर भी ऊँचा
होगा।
(12) कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता का सिद्धांत:
प्रबंध के इस सिद्धांत का मानना है कि यदि व्यक्तियों में कार्य पूरा करने की योग्यता है तो उनकी कार्य पर स्थिरता बनी रहनी चाहिए। इनमें बार-बार परिवर्तन या बदली न हो, वरन् वे संगठन में स्थायी रूप से कार्यरत रहें ताकि वे पूर्ण आस्था, निष्ठा एवं आत्मविश्वास के साथ कार्य कर सकें। इसलिए फेयोल ने कहा कि, “अत्यन्त कुशाग्र प्रबंधक जो केवल आते-जाते हैं, की अपेक्षा एक साधारण प्रबंधक ज्यादा श्रेष्ठ है, जो संस्था में दीर्घ अवधि तक रुकता है।”
(13) पहलपन का सिद्धांत:
कर्मचारियों को कार्य संबंधी योजना पर सोचने, प्रस्तावित करने एवं उसको कार्य रूप देने की स्वतंत्रता ही पहल शक्ति होती है जिसके फलस्वरूप कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं उनके उत्साह में वृद्धि होती है। यदि कर्मचारी अपने कार्यों के प्रति सजग रहे और उसमें पहल शक्ति की भावना का विकास किया जाये तो संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
(14) सहयोग की भावना का सिद्धांत:
इसके अनुसार, सभी कर्मचारियों को एक टीम के रूप में कार्य करना चाहिए।
- इसके लिए तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए40 आदेश की एकता के सिद्धांत का पालन करना,
- फूट डालो एवं शासन करो की नीति का परित्याग करना, एवं
- लिखित संप्रेषण के दोषों को दूर करना।