‘सुजान भगत’ प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इसमें ग्राम्य-जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है। संपूर्ण कहानी में सुजान भगत ही मुख्य पात्र है। सुजान की पत्नी का नाम बुलाकी है। बड़ा बेटा भोला है और छोटा बेटा शंकर।
सुजान भोला-भाला किन्तु एक सज्जन, परोपकारी किसान है। गर्मी, सर्दी तथा वर्षा में भी पसीना बहाकर खेती का काम करता है। सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं। सुजान की चित्तवृत्ति भी धर्म की ओर झुकने लगी। साधु-संतों का सत्कार, मेहमानों का जमघट, थानेदार अफसरों की चौपाल, भजन-भाव आदि होने लगे।
सुजान अति विनम्र-उदार बनकर सेवा-चाकरी करता, परन्तु घमंड नहीं। दूसरों के खेतों को पानी देता। लेकिन चेतन-जगत में आकर सुजान भगत कोरे भगत रह गया, तो उसके हाथों से अधिकार छीने जाने लगे। गाँव में भगत का सम्मान था, परन्तु घर में अनादर। लड़के उनकी चाकरी तो खूब करते, परन्तु अधिकार उनके हाथ में न था। वह अब घर का स्वामी नहीं, बल्कि मंदिर का देवता था।
पेड़ के नीचे बैठकर सुजान सदा विचारों में मग्न रहता। वह कोई अपाहिज नहीं, घर का सब काम करता है, फिर भी यह अनादर! अब वह द्वार का कुत्ता है, जो रूखा-सूखा मिले, वही खाकर पड़ा रहता। ऐसे जीवन को धिक्कार है। उसने रात-दिन मेहनत करके पसीना बहाया, सबकुछ सहा, पर आज भीख तक देने का अधिकार उसे नहीं है।
सुजान की पत्नी बुलाकी भी भगत का विरोध करती है। अब उसे बच्चे प्यारे लगते हैं और पति निखटू। बेटे के लिए माँ और माँ के लिए बेटे। सुजान तो मानो बाहर का आदमी है।
चैत का महीना था। जगह-जगह अनाज के ढेर लगे हुए थे। यही किसानों का सफल जीवन है। सुजान अनाज भरकर देता और बेटे अंदर रख आते। कितने ही भाट और भिक्षुक भगत को घेरे रहते। जो भिक्षुक आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश लौटा था, उसे भगत ने आज खूब-सारा अनाज देकर विदा किया। सुजान को इसमें बड़ा आनन्द मिलता था।
आठ महीने के निरंतर परिश्रम का सुजान को फल मिला था। आज उसको अपना खोया हुआं अधिकार फिर मिल गया था। मानव-जीवन में लगन महत्व की वस्तु है। लगन से बूढ़ा भी जवान बन जाता है। सुजान में लगन और मेहनत थी। अतः उसे अमानुषीय बल मिला। भोला से कहा – ये भाट और भिक्षुक खड़े हैं, कोई खाली हाथ न लौटने पाये। भोला सिर झुकाये खड़ा था। उसे कुछ बोलने का हौसला न हुआ। वृद्ध पिता ने उसे परास्त कर दिया था।