कौशल जी अद्भुत व्यक्ति थे। उनकी शिक्षा कक्षा नौ तक ही हुई थी। इसके बाद, वे अर्थोपार्जन के काम में जुटे। पहले प्रेस खोला। फिर बर्तनों का कारखाना खोल लिया। उसके बाद पंसारी की थोक की दुकान शुरू की। फिर होटल खोला, एक रिश्तेदार की सोडावाटर की फैक्टरी में बैठने लगे, बीमा कम्पनी में गए, शर्बत की दुकान खोली और अखबार निकाला। अब वह एक बड़ी कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे। फिर पुस्तक प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया और अन्त में एक पत्रकार बन गए। जब उनको किसी काम में सफलता नहीं मिलती थी, तब भी वह निराश नहीं होते थे और दूसरे नए काम में लग जाते थे।
कौशल जी की कार्यशीलता अटूट थी। वह एक छोड़ दूसरे काम में लग जाते थे। अनेक असफलताओं के बाद भी वह निराश नहीं हुए थे। उनकी कार्यशीलताका रहस्य यही था कि विपरीत स्थिति में भी वह निराश नहीं होते थे। उनका अपने ऊपर विश्वास डगमगाता नहीं था। वह अपनी पूरी ऊर्जा का संग्रह कर उसको किसी नवीन कार्य में लगा देते थे। प्रत्येक बार फ्रेश स्टार्ट अर्थात् एक ताजा नया आरम्भ करने में उनका विश्वास था। जब व्यक्ति निराश हो जाता है, तो उसका आत्मविश्वास नष्ट हो जाता है और उसकी कार्य-क्षमता समाप्त हो जाती है। कठिन परिस्थिति में भी निराश न होना और नए सिरे से काम आरम्भ करना ही कौशल जी की कर्मशीलता के अटूट रहने का रहस्य है।