नगरीकरण से आशय व्यक्तियों द्वारा नगरीय संस्कृति को स्वीकारना है। प्रत्येक देश में गाँवों से नगरों की ओर निरन्तर जनसंख्या का प्रवास होता रहता है। यह प्रवास सामान्यत: गाँवों से कस्बों, कस्बों से नगरों तथा नगरों से महानगरों की ओर होता रहता है। यह प्रक्रिया सतत् रूप से जारी है।
नगरीकरण की प्रक्रिया नगर से सम्बन्धित है। नगर सामाजिक विभिन्नताओं का वह समुदाय है। जहाँ द्वितीयक एवं तृतीयक समूहों और नियन्त्रणों, उद्योग और व्यापार, सघन जनसंख्या और वैयक्तिक सम्बन्धों की प्रधानता हो। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा गाँव धीरे-धीरे नगर में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार कृषि (प्राथमिक व्यवसाय) का उद्योग एवं व्यापार आदि में परिवर्तन नगरीकरण कहलाता है। श्री बर्गेल ग्रामों के नगरीय क्षेत्र में रूपान्तरित होने की प्रक्रिया को ही नगरीकरण कहते हैं।
इसी प्रकार किसी प्रदेश में उद्योग-धन्धों का विकास हो जाने के कारण जब ग्रामीण जनसंख्या रोजगार की खोज में ग्रामीण बस्तियों को छोड़कर नगरों की ओर प्रस्थान करने लगती है, तो नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। इस रूप में, नगरीकरण का अर्थ ‘नगरों के विकास’ से लिया जाता है। यह एक ऐसी शाश्वत प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति गाँवों से नगरों में प्रस्थान कर निवास करने लगते हैं।
भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने के साथ-साथ नगरीकरण में भी भारी वृद्धि हुई है। सन् 1901 में कुल नगरीय जनसंख्या 2.57 करोड़ थी, जो सन् 2001 में बढ़ते-बढ़ते 28.53 करोड़ हो गयी है। इस प्रकार इन 100 वर्षों के दौरान नगरीय जनसंख्या दस गुनी से भी अधिक हो गयी है, परन्तु फिर भी नगरीय जनसंख्या का कुल जनसंख्या में अनुपात उतनी वृद्धि नहीं कर पाया है जितनी कि कुल जनसंख्या में वृद्धि हुई है। भारत में सन् 1901 में नगरों व कस्बों की संख्या 1,916 थी जो सन् 1991 में बढ़कर 3,768 हो गयी। इस अवधि में देश में 2.57 करोड़ नगरीय जनसंख्या बढ़कर 21.76 करोड़ पहुँच गयी। अतः स्पष्ट है कि जहाँ एक ओर नगरीय जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है, वहीं ग्रामीण जनसंख्या में भी भारी वृद्धि अंकित की गयी है। निम्नांकित तालिका भारत में नगरीकरण की दर को प्रकट करती है –
भारत में नगरीकरण
Urbanization in India

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि सन् 1901 से लेकर सन् 1941 तक नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर बहुत ही धीमी गति से हुई है, परन्तु सन् 1951 के जनगणना वर्ष में नगरीय जनसंख्या में तीव्र वृद्धि अंकित की गयी। कुल जनसंख्या में पिछले 40 वर्षों के दौरान भी इतनी नगरीय जनसंख्या में वृद्धि नहीं हो पायी थी जितनी कि सन् 1941 से 1951 के दशक में। इसका प्रमुख कारण यह था कि देश विभाजन के फलस्वरूप बहुत-सी विस्थापित एवं शरणार्थी जनसंख्या पाकिस्तान से आकर नगरों में बस गयी थी। इसके साथ ही 1921 के बाद से देश प्राकृतिक विपदाओं से सुरक्षित रहा, परन्तु फिर भी अन्य पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में नगरीय जनसंख्या में कोई विशेष वृद्धि नहीं हो पायी।
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय भारत में आर्थिक विकास, राजनीतिक अस्थिरता के कारण काफी मन्द रहा, जिस कारण नगरीय जनसंख्या वृद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सन् 1961 के बाद से जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि अंकित की गयी है। सन् 1961 से 1981 के बीस वर्षों में नगरीय जनसंख्या वृद्धि पिछले साठ वर्षों से भी काफी अधिक रही है। वर्तमान समय में कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत 25.75 हो गया है। नगरीय जनसंख्या में इस भारी वृद्धि से नगरों की संख्या एवं उनकी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि अंकित की गयी है। सन् 2011 में देश में 7,936 नगर व 6.41 लाख गाँव थे।
नगरों की जनसंख्या में अतिशय वृद्धि के कारण
Causes of Excess Growth of Population in Cities
⦁ देश में उद्योग-धन्धों एवं व्यापारिक कार्यों में वृद्धि,
⦁ ग्रामीण जनसंख्या को भारी संख्या में नगरों की ओर स्थानान्तरण,
⦁ अनेक ग्रामीण बस्तियों का नगरीय बस्तियों में परिवर्तित हो जाना,
⦁ नवीन नगरों का विकसित होना तथा (5) वर्तमान नगरों को अपने क्षेत्रफल एवं जनसंख्या आकार में भारी वृद्धि करना।
भारत में नगरीकरण की विशेषताएँ
Characteristics of Urbanization in India
भारत में सन् 1941 से 1961 तक के 20 वर्षों में नगरीय जनसंख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। जो 49% अंकित की गयी है। यह वृद्धि-दर विश्व के अन्य विकसित देशों; जैसे जापान एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से भी कहीं अधिक है। वास्तव में इस अतिशय वृद्धि का कारण देश का विभाजन था, जिस कारण लाखों विस्थापित परिवार पाकिस्तान से आकर देश के नगरों में बस गये थे। सन् 1951 से 1961 के दशक में देश में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से औद्योगीकरण की आधारशिला रखी गयी, परन्तु नगरीय जनसंख्या की प्रतिशत वृद्धि बढ़ने के स्थान पर और भी घट गयी। नगरों में जन्म एवं मृत्यु-दर तथा ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर होने वाले स्थानान्तरण के सही आँकड़े उपलब्ध न होने से नगरीय जनसंख्या में वृद्धि के कारणों के विषय में निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता है, परन्तु फिर भी अनुमान लगाया गया है कि नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर उतनी ही है जितनी सम्पूर्ण देश में जनसंख्या-वृद्धि की दर हैं। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि की दर 17.64% वार्षिक है।
ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या नगरों की ओर प्रवास करती रहती है, परन्तु यह जनसंख्या कितनी है, इस विषय में विद्वानों के विचार अलग-अलग हैं। ग्रामों से नगरों में आकर बसने वाली जनसंख्या 82 लाख से 1 करोड़ 2 लाख तक अनुमानित की गयी है। इस जनसंख्या में वे 20 लाख व्यक्ति सम्मिलित नहीं हैं जो सन् 1941-51 के दशक में देश-विभाजन के समय पाकिस्तान से आकर नगरों में बस गये थे।
नगरीकरण (Urbanization) – वर्तमान समय में विश्व में नगरीकरण एक महत्त्वपूर्ण घटना है। नगरों की संख्या तथा उनकी जनसंख्या में अपार वृद्धि वर्तमान युग का महत्त्वपूर्ण तथ्य है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वीतल पर नगरों का उद्भव सबसे पहले 5,000 से 6,000 वर्ष पूर्व हुआ था। अतः इन्हें नवीन घटना के रूप में नहीं लिया जा सकता है, परन्तु मानवीय इतिहास में नगरीकरण की प्रक्रिया बहुत ही मन्द रही हैं, परन्तु यहाँ पर प्रश्न उठता है कि यह नगरीकरण क्या है?
ट्विार्था ने बताया है कि, “कुल जनसंख्या में नगरीय स्थानों में रहने वाली जनसंख्या का अनुपात ही नगरीकरण का स्तर बताता है।”
प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता ग्रिफिथ टेलर का कहना है, “गाँवों से नगरों की जनसंख्या का स्थानान्तरण ही नगरीकरण कहलाता है।
यदि नगरों की जनसंख्या में वृद्धि ग्रामीण जनसंख्या में वृद्धि की ही भाँति होती है, तो ऐसी दशा में यह नहीं कहा जा सकता कि नगरीकरण में कोई वृद्धि हुई है। नगरीकरण का भौगोलिक उद्देश्य उस सामाजिक वर्ग से है जो प्रायः अकृषि कार्यों (उद्योग, व्यापार, परिवहन, संचार, निर्माण, सेवा आदि) में लगा होता है। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण में गहन सम्बन्ध होता है।
नगरीकरण को अर्थव्यवस्था से सम्बन्ध
Relation of Urbanization with Economy
नगरीकरण का अर्थव्यवस्था से गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि नगरीकरण द्वारा देश की अर्थव्यवस्था कृषि (प्राथमिक कार्यों) से उद्योगों, व्यापार, संचार आदि कार्यों (गौण या अप्राथमिक कार्य) की ओर प्रवृत्त होती है। इससे प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। वास्तव में नगरीकरण में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय केन्द्रों की ओर लोगों के पलायन के कारण हुई है। नगरीकरण का अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित रूपों में प्रभाव पड़ता है –
⦁ भारत में औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव तीव्र गति से पड़ा है। इसके कारण भूमि की उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई है, क्योंकि कृषि-कार्यों में नवीन वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा है। इससे खाद्यान्नों का उत्पादन अतिरिक्त मात्रा में होने लगी तथा देश की खाद्य समस्या के हल होने में काफी सहायता मिली है।
⦁ कृषि-कार्यों के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है तथा बहुत अधिक क्षेत्र कम लोगों को रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके विपरीत नगरीय कार्यों; जैसे-उद्योग-धन्धे, निर्माण कार्य, व्यापार, सेवा आदि के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है, अर्थात् ये कार्य एक ही स्थान पर एकत्रित होकर अधिक लोगों को आर्थिक आधार प्रदान करते हैं।
⦁ उद्योग-धन्धों एवं सेवा कार्यों की अपेक्षा कृषि-उत्पादों को बाजार कम विस्तृत है जिससे इन नगरीय कार्यों ने बड़े क्षेत्रों तक अपना प्रभाव जमा लिया है जिससे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ आधार मिला है।
⦁ भूमि की उत्पादकता में जैसे-जैसे वृद्धि होती गयी, प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए मानव शक्ति की आवश्यकता भी कम होने लगी। इस अतिरिक्त मानवीय श्रम की खपत उद्योगों, व्यापार, परिवहन एवं संचार तथा सेवाओं आदि कार्यों में बढ़ गयी। इन कार्यों से मानव अधिक आर्थिक लाभ अर्जित करने लगा।
उपर्युक्त सभी तथ्यों ने मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली जनसंख्या को नगरों की ओर आकर्षित करने में सहायता की है। इस अतिरिक्त जनसंख्या को नगरों में आकर्षण मिलने के कारण उन्हें आर्थिक अवसर भी अच्छे मिलने लगे। इस प्रकार, भारत में नगरीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिससे समाज की आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है तथा उनका जीवन-स्तर पहले की अपेक्षा उच्च हुआ है। अतः नगरीकरण देश के आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण के लिए सार्थक सिद्ध हुआ है।