गाँव में रहने वाले व्यक्ति के लिए अपने गाँव के बारे में किसी अन्य व्यक्ति को बताने में ज्यादा सोचना नहीं पड़ता है। वह अपने गाँव की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या, जातीय संरचना, भू-स्वामित्व के प्रतिमान, व्यवसाय, आवास के प्रकार, खेतों में उगाई जाने वाली फसलों, ग्रामीण परिवारों, ग्रामवासियों में पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों, ग्राम पंचायत की गतिविधियों इत्यादि के बारे में विस्तार में बता सकता है। ऐसा करते समय बताए जाने वाले व्यक्ति को यह अहसास होना चाहिए कि उसने वास्तव में गाँव न देखकर भी गाँव की झलक प्राप्त कर ली है। गाँव में कच्चे एवं पक्के दोनों प्रकार के घर पाए जाते हैं। मुख्य सड़क से गाँव तक का रास्ता पक्का या खड्जे वाला हो। सकता है। गलियों में भी दोनों तरफ नालियाँ तथा बीच में खड़ेजा या कच्चा रास्ता हो सकता है। नालियों में प्रायः गंदगी रहती है तथा गलियों में भी नाली का पानी इधर-उधर से बाहर निकला हुआ दिखाई दे सकता है। ग्रामवासी कृषि से संबंधित क्रियाओं पर ही अपना ध्यान अधिक केंद्रित करते हैं। अधिकांश परिवारों की प्रकृति संयुक्त परिवार पद्धति वाली होती है तथा परिवारों का आकार भी अपेक्षाकृत बड़ा होता है। बड़े-बूढ़े छोटों का न केवल समाजीकरण करते हैं, अपतुि प्रत्येक सदस्य पर नियंत्रण भी रखते हैं। प्रत्येक सदस्य का प्रयास यह होता है कि वह कोई ऐसा कार्य न करे जिससे परिवार की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचे। ग्रामवासियों में संबंध प्रत्यक्ष एवं व्यक्तिगत होते हैं तथा उनमें सामुदायिक भावना पाई जाती है। गाँव में विभिन्न जातियों में पाया जाने वाला सामाजिक स्तरीकरण एवं भेदभाव स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। हो सकता है कि विभिन्न जातियों में सेवाओं का विनिमय भी पाया जाता है जिसे समाजशास्त्र में जजमानी व्यवस्था’ कहा जाता है। गाँव में उपलब्ध सुविधाओं का जिक्र भी किया जा सकता है जिससे बताने वाले को पता चल सके कि गाँव किस सीमा तक सार्वजनिक सुविधाओं की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं।