आधुनिक युग में सभी स्तरों पर व्यक्ति को प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। किसी अच्छे विद्यालय में प्रवेश के उदाहरण द्वारा इसे समझा जा सकता है। पहले कभी विद्यालयों में छह वर्ष के बच्चों को प्रवेश दिया जाता था तथा इसके लिए उन्हें या उनके माता-पिता को किसी प्रकार का साक्षात्कार नहीं देना पड़ता था। अब सभी जानते हैं कि अंग्रेजी माध्यम के अच्छे विद्यालयों में प्रवेश की न्यूनतम आयु चार वर्ष से अधिक होती है तथा प्रवेश एल०के०जी० में होता है। प्रथम कक्षा में बच्चा तब प्रवेश करता है जब उसकी आयु छह वर्ष की हो जाती है। अनेक ‘प्ले स्कूल’ एवं ‘नर्सरी स्कूल बच्चों को कम आयु में प्रवेश देकर उनकी योग्यताओं को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। ऐसे विद्यालयों का उद्देश्य बच्चों को अच्छे विद्यालय में प्रवेश हेतु योग्य बनाना है अर्थात् उसे इस लायक बनाना है कि वह अन्य उसी प्रकार के विद्यालयों के बच्चों से प्रवेश के समय अच्छा प्रदर्शन कर सके तथा उसका प्रवेश हो सके। यदि बच्चे का प्रवेश हो जाता है तो कम-से-कम इंटरमीडिएट कक्षा तक उसके माता-पिता उसकी शिक्षा के बारे में निश्चिन्त हो जाते हैं। प्रतिस्पर्धा की इस पहली सीढ़ी को पार करने वाले बच्चे अन्य बच्चों से कहीं आगे निकलने हेतु पुनः प्रतिस्पर्धा में लग जाते हैं। इंटरमीडिएट के बाद इंजीनियरिंग, मेडिकल, बी०बी०ए०, बी०सी०ए०, बी०ए०, बी-एस०सी०, बी० कॉम आदि में प्रवेश लेने के लिए उन्हें पुनः अन्य बच्चों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। यदि प्रवेश प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है तो वही बच्चे प्रवेश पाते हैं जिनका क्रम मैरिट में ऊँचा होता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार प्राप्त करने हेतु भी प्रतिस्पर्धा से ही गुजरना पड़ता है। इस प्रकार, आधुनिक युग में जीक्न के प्रत्येक स्तर पर व्यक्ति को किसी-न-किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। अभी हमारे देश में ऐसे शिक्षा संस्थान नहीं हैं कि बच्चा नर्सरी में प्रतिस्पर्धा के आधार पर प्रवेश ले ले तथा वहीं से डॉक्टर या इंजीनियर बनकर निकले। इंग्लैण्ड जैसे देश में बच्चों को इस प्रकार के अवसर उपलब्ध होते हैं। इसके विपरीत, अमेरिका में प्रत्येक स्तर पर प्रवेश हेतु बच्चों को अन्य के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। यही व्यवस्था भारतीय शिक्षा पद्धति की है।