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संघर्ष किसे कहते हैं? इसके प्रमुख प्रकार बताइए।

या

संघर्ष को परिभाषित कीजिए तथा समाज में इसका महत्व समझाइए।

या

संघर्ष क्या है? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।

या

संघर्ष से आप क्या समझते हैं? संघर्ष एवं सहयोग तथा संघर्ष एवं प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट कीजिए।

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सहयोग की तरह संघर्ष भी सामाजिक जीवन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। सहयोग को एक प्रमुख सहयोगी प्रक्रिया माना जाता है, जबकि संघर्ष को एक प्रमुख असहयोगी प्रक्रिया माना जाता है। सहयोग और संघर्ष को अधिकतर लोग एक-दूसरे की विरोधी प्रक्रियाएँ मानते हैं, जबकि इनको विरोधी न कहकर एक-दूसरे की परक एवं सहगामी प्रक्रियाएँ कहना अधिक उचित है। इसका कारण यह है कि सहयोग के बिना संघर्ष के बिना सहयोग की कल्पना केवल सैद्धांतिक रूप में ही की जा सकती है। यह एक ऐसी असहयोगी प्रक्रिया है जिसमें प्रतिद्वंद्वी समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसा तक का सहारा लेते हैं। वास्तव में यह दूसरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक रोकने का प्रयास है।

संघर्ष का अर्थ एवं परिभाषाएँ
संघर्ष को प्रमुख विद्वानों ने निम्नलिखित रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है-

फेयरचाइल्ड (Fairchild) के अनुसार-“संघर्ष एक प्रक्रिया या परिस्थिति है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति या समूह एक-दूसरे के उद्देश्यों को क्षति पहुँचाते हैं, एक-दूसरे के हितों की संतुष्टि पर रोक लगाना चाहते हैं, भले ही इसके लिए दूसरों को चोट पहुँचानी पड़े या नष्ट करना पड़े।
ग्रीन (Green) के अनुसार–“संघर्ष दूसरे या दूसरों की इच्छा का जानबूझकर विरोध करना, रोकना तथा उसे बलपूर्वक रोकने के प्रयास को कहते हैं।”
पार्क एवं बर्गेस (Park and Burgess) के अनुसार-“संघर्ष और प्रतियोगिता विरोध के दो रूप हैं जिनमें प्रतिस्पर्धा सतत एवं अवैयक्तिक होती है, जबकि संघर्ष का रूप असतत वे वैयक्तिक होता है।”
फिचर (Fichter) के अनुसार--‘संघर्ष पारस्परिक अंतःक्रिया का वह रूप है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे को दूर रखने का प्रयास करते हैं।”
गिलिन एवं गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार-“संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति विरोधी की हिंसा या हिंसा के भय के द्वारा करते हैं।”
कोजर (Coser) के अनुसार–‘स्थिति, शक्ति और सीमित साधनों के मूल्यों और अधिकारों के लिए होने वाले संघर्ष को ही सामाजिक संघर्ष कहा जाता है जिनमें विरोधी दलों का उद्देश्य अपने प्रतिस्पर्धी को प्रभावहीन करना, हानि पहुँचाना अथवा समाप्त करना भी है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अपने विरोधी को हिंसा का प्रयोग करके या हिंसा का भय देकर करते हैं। यह प्रत्यक्ष और चेतन प्रक्रिया है जिसमें सामान्यत: दूसरे पक्ष को किसी-न-किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का प्रयास किया जाता है।

संघर्ष की प्रमुख विशेषताएँ
संघर्ष के बारे में विभिन्न विद्वानों के विचारों से इसकी प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

⦁    सामाजिक प्रक्रिया-संघर्ष एक सामाजिक प्रक्रिया है क्योंकि इसके लिए दो व्यक्तियों अथवा समूहों का होना जरूरी है। यह एक प्रमुख असहयोगी प्रक्रिया है जो प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पायी जाती है।।
⦁    हिंसा या धमकी का प्रयोग-संघर्ष एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक पक्ष दूसरे के हितों को नुकसान पहुँचाने के लिए हिंसा का प्रयोग करता है अथवा ऐसा करने की धमकी देता है।
⦁    चेतन प्रक्रिया-संघर्ष को एक चेतन प्रक्रिया माना जाता है क्योंकि इसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं। इसमें लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ विरोधी के हितों को नुकसान पहुँचाना या उसे समाप्त कर देने का भी प्रयास किया जाता है।
⦁    वैयक्तिक प्रक्रिया-संघर्ष एक वैयक्तिक प्रक्रिया है जिसमें दो व्यक्ति या समूह किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर संघर्ष करते हैं। जब एक समूह दूसरे से संघर्ष करता है तो यह प्रतिद्वंद्वियों पर केंद्रित न होकर समूह विशेष पर केंद्रित होता है।
⦁    अनिरंतर प्रक्रिया संघर्ष अनिरंतर होने वाली प्रक्रिया है अर्थात् संघर्ष निरंतर न होकर रुक-रुककर होता रहता है। इसका कारण यह है कि कोई भी व्यक्ति या समूह सदैव संघर्षरत नहीं रह सकता। उसे कुछ समय बाद पुन: अपनी शक्ति संचित करनी पड़ती है।
⦁    सार्वभौमिक प्रक्रिया संघर्ष एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है क्योंकि यह प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पायी जाती है। यह सामाजिक जीवन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।

संघर्ष के विभिन्न स्वरूप
संघर्ष अनेक प्रकार का होता है। इसे विद्वानों ने अनेक श्रेणियों में विभाजित किया है। इस संबंध में प्रमुख विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं-

(अ) मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) द्वारा वर्गीकरण मैकाइवर एवं पेज ने संघर्ष को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया है

1. प्रत्यक्ष संघर्ष-प्रत्यक्ष संघर्ष दो पक्षों में आमने-सामने होने वाला संघर्ष है। इस प्रकार के संघर्ष को प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है। जातीय दंगे, सांप्रदायिक दंगे इत्यादि प्रत्यक्ष संघर्ष के ही उदाहरण हैं।
2. अप्रत्यक्ष संघर्ष—इस प्रकार के संघर्ष में व्यक्ति या समूह आमने-सामने नहीं आते हैं अपितु अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे से संघर्ष करते हैं। इस प्रकार के संघर्ष में विरोधी के प्रति घृणा, अविश्वास तथा शत्रुता की भावनाएँ पायी जाती हैं। असीमित प्रतिस्पर्धा तथा शीत युद्ध प्रत्यक्ष संघर्ष के उदाहरण हैं।

( अ ) किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) द्वारा वर्गीकरण
किंग्सले डेविस ने भी संघर्ष को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया है
⦁    आंशिक संघर्ष-यह कम मात्रा में पाया जाने वाला संघर्ष होता है। जब दो समूहों में लक्ष्यों के बारे में तो सहमति हो परंतु उनको प्राप्त करने के साधनों के बारे में मतभेद हो जाए तो इसे आंशिक संघर्ष कहते हैं।
⦁    पूर्ण संघर्ष—इस प्रकार के संघर्ष में विभिन्न संघर्षरत समूहों में न तो उद्देश्यों (लक्ष्यों) के बारे में और न ही इन्हें प्राप्त करने के बारे में सहमति होती है। उद्देश्यों को प्राप्त करने का एकमात्र साधन, ऐसी स्थिति में, बल प्रयोग द्वारा अथवा इसकी धमकी द्वारा रह जाता है। आंशिक और पूर्ण संघर्ष में अंतर केवल अंशों का है।

(स) गिलिन एवं गिलिन (Gilin and Gillin) द्वारा वगीकरण, गिलिन एवं गिलिन ने संघर्ष को प्रमुख पाँच प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया है जो कि निम्नलिखित
हैं-
⦁    वैयक्तिक संघर्ष-वैयक्तिक संघर्ष में दो व्यक्तियों के हितों में टकराव होने के फलस्वरूप उत्पन्न संघर्ष को सम्मिलित किया जाता है। वैयक्तिक संघर्ष प्रत्यक्ष संघर्ष होता है जिसमें दोनों पक्षों में गाली-गलौज, मार-पीट या घृणा के भाव सम्मिलित होते हैं। यह मुख्यत: स्त्री, धन या जमीन को लेकर होता है।
⦁    प्रजातीय संघर्ष–प्रजाति सामान्य शारीरिक लक्षणों वाला एक समूह है। इन्हीं शारीरिक लक्षणों के आधार पर एक प्रजाति अपने को दूसरी प्रजाति से भिन्न समझती है तथा इसी आधार पर उनमें श्रेष्ठता या निम्नता के भाव भी विकसित होते हैं। यह भाव एवं अंतर दोनों में कई बार संघर्ष के कारण भी बन जाते हैं। अमेरिका में सफेदपोश और नीग्रो प्रजातियों में संघर्ष प्रजातीय संघर्ष के प्रमुख उदाहरण है। प्रजातीय श्रेष्ठता के आधार पर शोषण भी किया जाता है।
⦁    वर्ग संघर्ष–वर्ग आधुनिक समाजों का प्रमुख लक्षण है। यद्यपि इसका प्रमुख आधार आर्थिक है। | फिर भी यह सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक हितों तथा प्रतिष्ठा से भी जुड़ा होता है। विभिन्न वर्ग हितों में विरोधाभास के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संघर्ष करने लगते हैं। पूँजीपति तथा श्रमिक वर्ग में पाए जाने वाले संघर्ष इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
⦁    राजनीतिक संघर्ष–राजनीतिक संघर्ष भी वर्तमान युग की देन है क्योंकि राजनीतिक क्षेत्र में आए दिन संघर्ष देखे जा सकते हैं। राजनीतिक दलों में उद्देश्यों के टकराव के कारण होने वाला अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष संघर्ष भी राजनीतिक संघर्ष का एक उदाहरण है। विश्व के दो विभिन्न राष्ट्रों में होने वाले संघर्ष को भी राजनीतिक संघर्ष कहते हैं जिसमें हजारों, लाखों लोगों की जाने जा सकती हैं।
⦁    अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष-संघर्ष स्थानीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं होते, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखे जा सकते हैं। आज सभी राष्ट्र कई गुटों में विभाजित हैं। इन गुटों में भी विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टकराव की स्थिति बनी रहती है। आज दो राष्ट्रों में होने वाला संघर्ष केवल उन्हीं राष्ट्रों तक सीमित नहीं रहता, अपितु अनेक अन्य राष्ट्र भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस संघर्ष में सहायता देते हैं।

उपर्युक्त संघर्ष के प्रकारों के अतिरिक्त कई बार पारिवारिक संघर्ष, सामुदायिक संघर्ष, जातीय व उपजातीय संघर्ष, धार्मिक एवं सांप्रदायिक संघर्ष का भी उल्लेख किया जा सकता है।

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संघर्ष के प्रमुख कारण
संघर्ष का कोई एक कारण नहीं है, अपितु यह अनेक कारणों से होते हैं। वास्तव में, संघर्ष के विभिन्न स्वरूपों से ही इसके कारणों का पता चल जाता है। गिलिन एवं गिलिन ने इसके प्रमुख कारणों को चारै श्रेणियों में विभाजित किया है–

⦁    व्यक्तिगत भिन्नताएँ-व्यक्तिगत, भिन्नताएँ, वैयक्तिक संघर्ष तथा सामूहिक संघर्ष को जन्म | देती हैं। व्यक्तिगत मनोवृत्तियों, मूल्यों आदतों, क्षमताओं, दृष्टिकोणों तथा स्वभाव में अंतर अनेक परिस्थितियों में संघर्ष का कारण बन जाता है।
⦁    सांस्कृतिक भिन्नताएँ–सांस्कृतिक भिन्नताओं का संबंध विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों में पाए जाने वाले अंतर से है। संस्कृति के आधार पर भी राष्ट्रों में श्रेष्ठता या भिन्नता की भावना पायी जा सकती है। विभिन्न प्रजातियों, जातियों, वर्गों या राष्ट्रों में सांस्कृतिक भिन्नताओं के आधार पर संघर्ष पैदा होते रहते हैं।
⦁    परस्पर विरोधी हितों या स्वार्थों का टकराव-परस्पर विरोधी हिंतों व स्वार्थों का टकराव | वैयक्तिक, सामूहिक, प्रांतीय, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय किसी भी स्तर पर हो सकता है। पूँजीपतियों तथा श्रमिकों में पाए जाने वाले संघर्ष का प्रमुख कारण परस्पर विरोधी हितों का पाया जाना ‘तथा इनमें टकराव ही है।
⦁    सामाजिक परिवर्तन—यह भी संघर्ष का एक प्रमुख कारण है। किसी भी समाज के विभिन्न समूहों में परिवर्तन एक समान गति से नहीं होता है। अगर एक समूह परिवर्तन के परिणामस्वरूप आधुनिकीकृत हो जाता है और दूसरा पीछे रह जाता है तो उनमें मूल्यों को लेकर संघर्ष उत्पन्न हो सकता है। विभिन्न पीढ़ियों में पाया जाने वाला संघर्ष भी सामाजिक परिवर्तन की ही देन है।

संघर्ष का महत्त्व
यद्यपि संघर्ष एक असहयोगी व विघटनकारी प्रक्रिया है फिर भी यह एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है। जिसका जीवन में अपना अलग महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज तो प्रकार्यवादी विद्वान् भी इसके प्रकार्यात्मक महत्त्व को स्वीकार करने लगे हैं। इसके महत्त्व को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है-

⦁    चेतना का विकास संघर्ष मानवीय चेतना का प्रमुख आधार है क्योंकि इसी से व्यक्ति में अपने प्रति, समूह के प्रति अथवा राष्ट्र के प्रति चेतना की भावना का विकास होता है। रयूटर एवं हार्ट (Reuter and Hart) ने इस संदर्भ में लिखा है-“संघर्ष समस्त चेतन जीवन का आधार है। आत्म-चेतना तथा सामूहिक चेतना संघर्ष के द्वारा ही उत्पन्न हो सकती है।”
⦁    व्यक्तित्व का निर्माण–संघर्ष व्यक्तित्व के निर्माण में भी सहायक है क्योंकि अगर व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में संघर्ष न करें तो वे न तो पर्यावरण से अनुकूलन ही कर सकते हैं और न ही वे अपनी आंतरिक क्षमता का विकास ही कर सकते हैं।
⦁    एकीकरण को बढ़ावा-संघर्ष को एक दृष्टि से प्रकार्यात्मक माना जाता है कि यह एकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। अगर बाहरी समूह में संघर्ष होता है तो समूह के सदस्यों में | आंतरिक एकीकरण अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है।
⦁    मानव जीवन का संगठन संघर्ष मानव जीवन को संगठित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संघर्षों का सामना करने के लिए मानव अपनी आंतरिक शक्ति का पूर्ण विकास करते हैं। संघर्षपूर्ण जीवन के कारण ही व्यक्ति विभिन्न समस्याओं का सरलता से सामना कर लेता है।
उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि संघर्ष एक प्रमुख असहयोगी प्रक्रिया है। परन्तु संघर्ष एक विघटनकारी प्रक्रिया होते हुए भी समाज की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है। मैकाइवर एवं पेज ने इस दृष्टि से उचित ही कहा है कि संघर्ष के द्वारा ही सहयोग की भावना का विकास होता है।

सहयोग एवं संघर्ष में अंतर
सहयोग और संघर्ष दोनों सामाजिक प्रक्रियाएँ हैं तथा सामाजिक जीवन की अभिन्न प्रक्रियाएँ होने के नाते एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। दोनों में पाए जाने वाले प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं-

प्रतियोगिता और संघर्ष में भेद
प्रतियोगिता और संघर्ष को आधुनिक समाजों में पायी जाने वाली दो प्रमुख सहयोगी प्रक्रियाएँ माना गया। है। यद्यपि संघर्ष परंपरागत समाजों में भी पाया जाता था परंतु इसकी मात्रा कहीं कम थी। प्रतियोगिता और संघर्ष दोनों एक नहीं हैं अपितु इनकी प्रकृति में काफी अंतर पाया जाता है। पार्क एलं बर्गेस (Park and Burgess) ने लिखा है-“संघर्ष और प्रतियोगिता विरोध के दो रूप हैं। जिनमें प्रतियोगिता सतत और अवैयक्तिक होती है, जबकि संघर्ष का रूप अनिरंतर और वैयक्तिक होता है। दोनों में निम्नलखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं-

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाती है कि प्रतियोगिता और संघर्ष दोनों असहयोगी सामाजिक प्रक्रियाएँ हैं परंतु दोनों की प्रकृति में काफी अंतर पाया जाता है।

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