1. परजीविता
ये विषमपोषी (heterotrophic) जीव हैं जो अपने परपोषी (host) के शरीर से आहार प्राप्त करते हैं। परजीवी विकल्पी (facultative) तथा अविकल्पी (obligate) दो प्रकार के हो सकते हैं। विकल्पी परजीवी मुख्यत: मृतोपजीवी (saprophytic) होते हैं, जो विशेष परिस्थितियों में ही परजीवी बनते हैं; जैसे-अधिकांश कवक या जीवाणु। अविकल्पी परजीवी, परपोषी (host) के परभक्षी (predator) होते हैं। कुछ आवृतबीजी (angiosperms) भी परजीवी स्वभाव को व्यक्त करते हैं, जैसे- कुस्कुटा (Cuscuta) – पूर्ण तना परजीवी; विस्कम (Viscum) तथा लोरेन्थस (Loranthus) – आंशिक तना परजीवी, रेफ्लेसिया (Rufflesia) और औरोबैकी (Orobanchae) – पूर्ण जड़ परजीवी; सैन्टेलम एलबम (Suntalum album) – आंशिक जड़ परजीवी है।
2. सहभोजिता
यह दो जीवों के बीच परस्पर सम्बन्ध है जिसमें एक जीव को लाभ होता है और दूसरे जीव को न हानि न लाभ होता है। आम की शाखा पर अधिपादप के रूप में उगने वाला ऑर्किड और हेल की पीठ को आवास बनाने वाले बार्नेकल को लाभ होता है जबकि आम के पेड़ और ह्वेल को उनसे कोई लाभ नहीं होता। पक्षी बगुला और चारण पशु निकट साहचर्य में रहते हैं। सहभोजिता का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ पशु चरते हैं उसके पास ही बगुले भोजन प्राप्ति के लिए रहते हैं क्योंकि जब पशु चलते हैं तो वनस्पति को हिलाते हैं और उसमें से कीट बाहर निकलते हैं। बगुले उन कीटों को खाते हैं अन्यथा वानस्पतिक कीटों को ढूंढ़ना और पकड़ना बगुले के लिए कठिन होता। सहभोजिता का दूसरा उदाहरण समुद्री ऐनिमोन दंशन स्पर्शक हैं, जिसमें उनके बीच क्लाउन मछली रहती है। मछलियों को परभक्षियों से सुरक्षा मिलती है जो दंशन स्पर्शकों से दूर रहते हैं। क्लाउन मछली से ऐनिमोन को कोई लाभ मिलता हो ऐसा नहीं लगती।
3. सहजीवन
यह दो भिन्न प्रजाति के जीवों के बीच पाया जाने वाला सहजीवी (Symbiotic) सम्बन्ध होता है। जिसमें दोनों जीवों को परस्पर लाभ (benefit) होता है। कवक और प्रकाश संश्लेषी शैवाल या सायनोबैक्टीरिया के बीच घनिष्ठ सहोपकारी सम्बन्ध का उदाहरण लाइकेन में देखा जा सकता है। इसी प्रकार कवकों और उच्चकोटि पादपों की जड़ों के बीच कवकमूल (माइकोराइजी) साहचर्य है। कवक, मृदा से अत्यावश्यक पोषक तत्त्वों के अवशोषण में पादपों की सहायता करते हैं जबकि बदले में पादप, कवकों को ऊर्जा-उत्पादी काबोहाइड्रेट देते हैं।