मेरे द्वारा चयनित प्रथम दोहा “रहिमन देखि …….. करै तरवारि॥” है। इसका विषय छोटे लोगों का महत्व बताना है। कवि ने सुई और तलवार के माध्यम से बड़ा उपयोगी परामर्श दिया है। बड़ों से मेलजोल होने पर लोग छोटे लोगों को भुला देते हैं। कभी-कभी ऐसा काम आ पड़ता है कि बड़े लोगों से मेलजोल बेकार सिद्ध होता है। छोटे व्यक्ति की ही सहायता लेनी पड़ती है। कपड़े सिलते हैं तो इतनी लम्बी, दृढ़ और शक्ति की प्रतीक तलवार कुछ काम नहीं आती, सुई की ही शरण लेनी पड़ती है।
दूसरी दोहा “बिपति भए……………..भए भोर॥” है।
धन वैभव से सम्पन्न व्यक्ति को अपने धन-बल पर बड़ा भरोसा होता है। वह अपने धन को अभेध भवन जैसा मान बैठता है। जब विपत्ति उस प्रहार करती है तो उसका विश्वस्त बल धन भी उसे दगा दे जाता है। कवि ने इस सच्चाई के प्रति हमेशा इस दोहे द्वारा सचेत किया है। रात्रि में आकाश में असंख्य तारे दिखाई पड़ते हैं पर ‘भोर’ भोररूपी विपत्ति आने पर उनका कहीं अता-पता नहीं चलता। इसलिए धन पर अतिविश्वास करना बुद्धिमानी नहीं है।
तीसरा दोहा “बड़े बेड़ाई……………मेरौ मोल॥” है।
इस दोहे में कवि ने शेखीखोरों और अहंकारियों को अपने व्यंग्य का निशाना बनाया है। बड़ा वह है जिसे सारा समाज बड़ा माने। ‘अपने मुँह मियाँ मिट्ठू’ बनने से, अपनी बड़ाई अपने आप करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। कवि ने ऐसे लोगों को हीरे का उदाहरण देकर, दर्पण दिखाने का काम किया है।