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अवलोकन-पद्धति के गुणों एवं दोषों की विवेचना कीजिए।

या

सामाजिक अन्वेषण में प्रयोग की जाने वाली पद्धति के रूप में अवलोकन के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।

या

समाजशास्त्री अनुसंधान में अवलोकन-पद्धति के महत्त्व की व्याख्या कीजिए।

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अवलोकन का मूल्यांकन
अवलोकन का अर्थ देखना है, अर्थात् आँखों के प्रयोग द्वारा घटनाओं की जाँच-पड़ताल करने की पद्धति को अवलोकन कहा जाता है। यह आँकड़े एकत्रित करने की एक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक पद्धति मानी जाती है। अवलोकन का मूल्यांकन इसके गुणों एवं दोषों के आधार पर किया जा सकता है। किसी भी अनुसंधान पद्धति के अपने कुछ गुण तथा सीमाएँ होती हैं। अवलोकन के गुण-दोषों की विवचेना इस प्रकार से की जाती है-

अवलोकन के प्रमुख गुण
अवलोकन पद्धति में पाए जाने वाले प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

⦁    सरल अध्ययन–अवलोकन पद्धति का प्रयोग अत्यंत सरल कार्य है। इसमें अनुसंधानकर्ता को आँखों से निरीक्षण-मात्र करना होता है तथा घटना के बारे में तथ्य एकत्रित करने होते हैं। इस प्रकार के कार्य में अन्य किसी प्रकार के साधन की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि सारे तथ्यों का संकलन देखकर किया जाता है, इसलिए अनुसंधानकर्ता तथ्यों के संकलन में भी सफल रहता है।
⦁    सही सूचनाओं का संकलन–अवलोकन का अभिप्राय देखना है। व्यक्ति जिस वस्तु को स्वयं देखता है, वह उसके बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है। इसके अतिरिक्त ‘आँखों द्वारा देखकर एकत्रित सूचनाएँ अधिक विश्वसनीय होती हैं। किसी सूचनादाता द्वारा बताई गई बातें तो पक्षपातपूर्ण एवं गलत हो सकती हैं, परंतु आँखों द्वारा देखकर एकत्रित सूचनाएँ सदैव सही होती हैं।
⦁    पुनः जाँच संभव–अवलोकन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के संबंध में यदि कोई शंका किसी समय होने लगे तो उसकी पुनः जाँच कभी भी की जा सकती है। पुनः जाँच द्वारा पहले से एकत्रित सूचनाओं की प्रामाणिकता को सिद्ध किया जा सकता है तथा तथ्यों की जाँच की जा सकती है।
⦁    सार्वभौमिक पद्धति-अवलोकन एक सार्वभौमिक पद्धति है; क्योंकि एक तो इसका प्रयोग सभी विज्ञानों में होता है और दूसरे, विद्वानों का विचार है कि विज्ञान का कार्य अवलोकन द्वारा प्रारम्भ होता है और प्रामाणिकता की जाँच भी अवलोकन द्वारा ही होती है; अतः सभी सामजिक व प्राकृतिक विज्ञानों में ज्ञान प्राप्त करने की प्रथम श्रेणी अवलोकन हीं है और इसलिए इसे एक सार्वभौमिक पद्धति भी माना जाता है।
⦁    ज्ञान में आशातीत वृद्धि—-अवलोकन पद्धति द्वारा ज्ञान में आशातीत वृद्धि होती है। हमारे ज्ञान में वृद्धि का प्रमुख स्रोत हमारा दैनिक घटनाओं का अवलोकन ही है। किसी भी वस्तु या दृश्य | को आँखों से देखकर वस्तु या प्रश्न के संबंध में पूर्ण ज्ञान हो सकता है।
⦁    सर्वाधिक प्रचलित पद्धति-अवलोकन एक सर्वाधिक प्रचलित पद्धति है; क्योकि कोई भी ऐसा विज्ञान नहीं है जिसमें अवलोकन पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग नहीं किया जाता हो। इस पद्धति का प्रयोग केवल सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए ही नहीं किया जाता, अपितु सूचनाओं की प्रामाणिकता की जाँच करने के लिए भी किया जाता है। इसलिए यह सर्वाधिक प्रचलित पद्धति है।
⦁    उपकल्पनाओं का निर्माण–अवलोकन पद्धति उपकल्पनाओं के निर्माण का भी एक प्रमुख स्रोत है; क्योंकि अधिकांश उपकल्पनाओं का निर्माण व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही किया जाता है जो कि हमें अवलोकन द्वारा प्राप्त होता है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अवलोकन सूचनाओं के संकलन एवं संकलित सूचनाओं की प्रामाणिकता की जाँच करने की एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है।

अवलोकन के प्रमुख दोष
एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद्धति होने के बावजूद यह पूर्ण रूप से दोषरहित नहीं है। इसमें पाए जाने वाले प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

⦁    अवलोकनकर्ता का वैयक्तिक दृष्टिकोण–प्रत्येक व्यक्ति की घटनाओं एवं वास्तविकता को देखने का अपना पृथक् दृष्टिकोण होता है तथा वह इस दृष्टिकोण से,अध्ययन के समय अधिक विमुख नहीं हो सकता। उसका यह वैयक्तिक दृष्टिकोण अवलोकन को अवैज्ञानिक बना देता है। तथा इससे एकत्रित सूचनाओं की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
⦁    निष्पक्षता का अभाव-व्यक्ति अपने पूर्वजों की संस्कृति को विरासत में प्राप्त करता है और उसी संस्कृति को जीवन-पर्यंत पालन भी करता है। इसी संस्कृति द्वारा प्राप्त मूल्यों, विश्वासों व मनोवृत्तियों के आधार पर वह घटनाओं का अध्ययन भी करता है। अवलोकन करते समय वह अवलोकित घटना की व्याख्या अपने इन्हीं मूल्यों, मनोवृत्तियों एवं पूर्वाग्रहों के संदर्भ में करता है। जिससे संकलित आंकड़ों की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
⦁    समय का अपव्यय-अवलोकन पद्धति में अवलोकनकता को घटना का अवलोकन करने के लिए स्वयं घटनास्थल पर जाना पड़ता है। वहाँ अनेक बार जाने व घटना का अवलोकन करने में काफी समय लग जाता है। यदि सहभागी अवलोकन द्वारा सूचना एकत्रित की जा रही है तो अवलोकनकर्ता को समूह के सदस्यों का विश्वास प्राप्त करने में ही काफी समय लग जाता है।।
⦁    सदस्यों के व्यवहार में कृत्रिमता–यदि किसी समूह के सदस्यों को यह पता चल जाता है कि कोई अजनबी उनके बीच उपस्थित है और उनके व्यवहार का अवलोकन कर रहा है तो उनके व्यवहार में कृत्रिमता आ जाती है। इस दशा में अवलोकतनकर्ता सदस्यों के वास्तविक व्यवहार के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाता।
⦁    घटनाओं की अमूर्तता–समाजशास्त्र में अनेक घटनाएँ अमूर्त होती हैं, जिनका अवलोकन संभव नहीं है और इस प्रकार ऐसी घटनाओं के अवलोकन का अवसर अवलोकनकर्ता को प्राप्त ही नहीं होता है।
⦁    घटनास्थल से दूरी-अवलोकन पद्धति का एक अन्य दोष अवलोकनकर्ता की घटनास्थल से दूरी है। क्योंकि पहले से यह पता नहीं होता है कि कौन-सी घटना कैब, कहाँ और किस रूप में घटित होगी, इसलिए अवलोकनकर्ता समय पर पहुँचकर उसका अध्ययन नहीं कर सकता।।
⦁    घटनाओं की अनिश्चितता–घटनाओं के घटने के समय व स्थान निश्चित नहीं होते हैं। इसलिए अवलोकनकर्ता अधिकतर प्राथमिक स्तर पर आँकड़े एकत्रित करने में सफल नहीं हो पाता है। अनिश्चितता के कारण वह उनके संबंध में पूर्वानुमान नहीं लगा सकता है।
⦁    भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन अंसभव—अवलोकन पद्धति द्वारा भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अतीत की घटनाओं को देखा नहीं जा सकता। अतः अवलोकन का प्रयोग केवल सीमित परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।
⦁    ज्ञानेंद्रियों की अपूर्ण क्षमता-ज्ञानेंद्रियों की क्षमता का पूर्ण न होना भी अवलोकन पद्धति का एक प्रमुख दोष है। यदि किसी घटना के कुछ पहलुओं को अवलोकनकर्ता देख न पाए अथवा जो वह देख रहा है उसे अर्थपूर्ण ढंग से समझ न सके तो प्राप्त सूचनाएँ दोषपूर्ण हो सकती हैं।

निष्कर्ष-उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अवलोकन एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है, परंतु फिर भी यह पूरी तरह दोषरहित नहीं है। यदि दोषों को अवलोकनकर्ता के स्तर पर नियंत्रित करके कम कर दिया जाए तो यह एक अच्छी व अत्यंत विश्वसनीय पद्धति हो सकती है।

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